यूपीए सरकार के दौरान हर महीने होते थे 9000 फोन टैप, RTI में हुआ खुलासा
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यूपीए सरकार के दौरान हर महीने होते थे 9000 फोन टैप, RTI में हुआ खुलासा

हाल ही में केंद्र सरकार ने 10 केंद्रीय एजेंसियों को किसी भी कंप्यूटर सिस्टम में रखे गए सभी डाटा की निगरानी करने और उन्हें देखने के अधिकार दिए हैं.

फोन और ई-मेल की निगरानी करने का अधिकार 1885 के टेलीग्राफ एक्ट और 2007 में इस एक्ट में किए गए संशोधन के आधार पर दिया गया था.

नई दिल्ली: फोन टैपिंग के मामले में सामने आई एक आरटीआई में बड़ा खुलासा हुआ है. इस आरटीआई के अनुसार, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के कार्यकाल के दौरान 2013 में फोन टैपिंग के साथ ई-मेल पर भी नजर रखी जा रही थी. आरटीआई में सामने आई जानकारी की मानें, तो यूपीए सरकार के कार्यकाल में हर माह 9,000 फोन लाइनें और 500 ई-मेल की जानकारी भी सरकार की ओर से खंगाली गई.  

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फोटो साभार : ANI

 

10 खूफिया एजेंसियों को दिए गए हैं जांच के अधिकार
गौरतलब है कि हाल ही में केंद्र सरकार ने 10 केंद्रीय एजेंसियों को किसी भी कंप्यूटर सिस्टम में रखे गए सभी डाटा की निगरानी करने और उन्हें देखने के अधिकार दिए हैं. केंद्रीय गृह मंत्रालय के साइबर एवं सूचना सुरक्षा प्रभाग ने गुरुवार को यह आदेश जारी किया. आदेश के मुताबिक, 10 केंद्रीय जांच और खुफिया एजेंसियों को अब सूचना प्रौद्योगिकी कानून के तहत किसी कंप्यूटर में रखी गई जानकारी देखने, उन पर नजर रखने और उनका विश्लेषण करने का अधिकार होगा.

यूपीए सरकार के कार्यकाल में खंगाले जाते थे 500 ई-मेल
नवंबर 2013 की आरटीआई में गृह मंत्रालय की ओर से दी गई जानकारी में बताया गया है कि 2013 में हर माह औसतन 7,500 से 9,000 फोन को टैप करने के आदेश केंद्र सरकार की ओर से दिए जाते थे. वहीं, एक अन्य आरटीआई को दिए गए जवाब में बताया गया है कि यूपीए सरकार के कार्यकाल में हर माह लगभग 300 से 500 ई-मेल अकाउंट की जानकारियां खंगालने के आदेश जारी होते थे.  

एनआईए, रॉ और सीबीआई भी करती थी निगरानी
इस आरटीआई के अनुसार, 2013 में सरकारी एजेंसियों को कानूनी तौर पर निगरानी करने के लिए अधिकार दिए गए थे. इन एजेंसियों में इंटेलीजेंस ब्यूरो (आईबी), नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) डीआरआई, सीबीडीटी जैसी संस्थाएं थीं. इसके साथ ही सीबीआई, एनआईए और भारतीय खूफिया एजेंसी रॉ को भी फोन टैपिंग और ई-मेल खंगालने के आदेश दिए गए थे. जानकारी के अनुसार, दिल्ली के पुलिस कमिश्नर, डायरेक्ट्रेट ऑफ सिग्नल इंटेलीजेंस (जम्मू-कश्मीर, नॉर्थ ईस्ट और असम) को निगरानी कर डाटा खंगालने के आदेश दिए गए थे.     

1885 के टेलीग्राफ एक्ट और 2007 के संसोधन के आधार पर जारी हुए आदेश
आरटीआई में बताया गया है कि फोन और ई-मेल की निगरानी करने का अधिकार 1885 के टेलीग्राफ एक्ट और 2007 में इस एक्ट में किए गए संशोधन के आधार पर दिया गया था. वहीं, केंद्रीय एजेंसियों को जानकारी की निगरानी करने के आदेश पर केंद्र सरकार की ओर से दी गई सफाई में कहा गया है कि यह पूर्व में जारी आदेश के आधार पर ही किया गया है. बता दें कि इस आदेश के आने के बाद से केंद्र सरकार और विपक्ष के बीच जुबानी जंग तेज हो गई है. विपक्ष का आरोप है कि केंद्र सरकार लोगों की निजता के अधिकार में हस्तक्षेप कर रही है.   

विपक्ष बना रहा है 'तिल का ताड़'- केंद्र सरकार
केंद्र सरकार की ओर से दी गई सफाई में कहा गया है कि यह आदेश 2009 में भी तात्कालीन सरकार की ओर से यह आदेश जारी किए गए थे. केंद्र सरकार की ओर से कहा गया है कि 20 दिसंबर, 2018 को जारी किया गया आदेश 2009 के आदेश की ही पुनरावृत्ति है. विपक्ष की ओर से जबरदस्ती 'तिल का ताड़' बनाया जा रहा है. 

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