दिव्या मदेरणा Vs हनुमान बेनीवाल : रफ्तार में धार लेकिन कांटों भरी है राह
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दिव्या मदेरणा Vs हनुमान बेनीवाल : रफ्तार में धार लेकिन कांटों भरी है राह

राजस्थान की राजनीति में हनुमान बेनीवाल और दिव्या मदेरणा की बीच बयानबाजी लगातार चल रही है. Divya maderna और Hanuman beniwal खींवसर और ओसियां में जाकर एक दूसरे को घेर रहे है. ऐसे में बाड़मेर से लेकर जोधपुर और नागौर तक के जाट बेल्ट में इन दिनों ये दोनों नेता चर्चा में बने हुए है. लेकिन रास्ता इतना आसान नहीं है.

दिव्या मदेरणा Vs हनुमान बेनीवाल : रफ्तार में धार लेकिन कांटों भरी है राह

Nagaur : राजस्थान की जाट राजनीति के कुछ स्तंभ हुआ करते थे. उन्हीं में से एक नाम है मदेरणा. पश्चिमी राजस्थान की खांटी राजनीति के आसरे अपनी सत्ता स्थापित करने वाले परसराम मदेरणा की विरासत अब उनकी पौती दिव्या मदेरणा संभाल रही है. जिस दिन पुलिस के हाथ महीपाल मदेरणा तक पहुंचे. उसी दिन से दिव्या मदेरणा ने अपनी मां के साथ कंधे से कंधा मिलाकर मोर्चा संभाल लिया था. एक बेटी के रुप में संघर्ष किया तो कभी एक सशक्त राजनेता के रुप में सामने आई. 

2018 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में दिव्या मेदरणा ओसियां से विधायक चुनी गई. जिसके बाद से वो अक्सर अपने बयानों और तेवर की वजह से चर्चा में बनी रहती है. कभी अपने क्षेत्र में अधिकारियों को फटकारती नजर आती है. कभी जिला प्रमुख चुनावों में अपनी जिद्द पर अड़ी रहती है. तो कभी विधानसभा में अपनी ही सरकार और उसके मंत्रियों को घेरती नजर आती है. हाल में जल जीवन मिशन को लेकर विधानसभा में अपनी ही सरकार के मंत्री महेश जोशी पर निशाना साधा. तो रोहित जोशी पर लगे दुष्कर्म मामलों के बाद भी खुलकर राय रखी. तो अब प्रदेश में जाट राजनीति के पावर सेंटर के रुप में उभर रहे खींवसर का सियासी तापमान मापने और उसका ऑपरेशन करने की बात कहकर सीधे तौर पर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी और उसके सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल को ललकार रही है.

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परसराम मदेरणा साल 1953 में चाड़ी गांव से सरपंच चुने गए थे. तब से शुरु हुआ इस परिवार का सियासी सफर अब भी जारी है. अगर एक कार्यकाल 1985-90 को छोड़ दिया जाए. तो परसराम मदेरणा 1957 से 1998 तक लगातार विधायक रहे. कई महत्वपूर्ण मंत्रालय भी संभाले. 1982 में परसराम मदेरणा के बेटे और दिव्या मदेरणा के पिता महिपाल मेदरणा जोधपुर के जिला प्रमुख बने. इसके बाद साल 2003 से महीपाल मदेरणा ने विधानसभा का चुनाव लड़ना शुरु किया. 2003 और 2008 में वो भी विधायक बने. लेकिन 2008-13 के कार्यकाल में वो जेल चले गए. जिसके बाद बेटी दिव्या मदेरणा ने परिवार की विरासत को संभाला. करीब 5 साल बाद 2018 में दिव्या ओसियां से चुनावी मैदान में उतरी. जीत के बाद लगातार प्रदेश स्तर के मुद्दों पर मुखर होकर बयान देती रही है. विरोधी दल के नेता हो या अपनी पार्टी के नेता हो, या फिर चाहे अपनी ही बिरादरी के नेता हो. वक्त वक्त पर घेरती रही.

आसान नहीं है दिव्या मदेरणा का रास्ता

परसराम मदेरणा और महिपाल मदेरणा ने करीब 60 सालों तक मारवाड़ की राजनीति पर अपना प्रभाव बनाए रखा. लेकिन इन दोनों बाप-बेटे का जनता के साथ एक आत्मीय कनेक्शन था. वे जनता के साथ बेहद सादगी से पेश आते थे. जनता से जनता की भाषा में संवाद स्थापित करना उनकी ताकत थी. तो उसके उलट दिव्या मदेरणा की छवि आक्रामक नेता के रुप में भले ही हो. लेकिन अपने पिता और दादा की तरह जनता के साथ कनेक्शन स्थापित करने के लिए भाषा में वो जुड़ाव नहीं है. उनके भाषण कभी अंग्रेजी में होते है तो कभी क्लिष्ट हिंदी में होते है. 

नागौर में जाट राजनीति के केंद्र रहे मिर्धा परिवार की राजनीति के समानांतर अब हनुमान बेनीवाल अपनी राजनीतिक को खड़ा कर चुके है. जिन्हौने अपनी पार्टी को पिछले चार सालों में मारवाड़ और जाट बेल्ट में काफी मजबूती से स्थापित किया है. ऐसे में जहां अपनी ही पार्टी में दिव्या मदेरणा कई बार असहज और अपने नेताओं को घेरती नजर आती है. वैसे हालातों में हनुमान बेनीवाल जैसे राजनेताओं से उसका मुकाबला है. 

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बेनीवाल से क्यों टकरा रही है दिव्या मदेरणा

2018 के विधानसभा चुनावों से ठीक पहले बनी आरएलपी ने बाड़मेर और नागौर के साथ जोधपुर में काफी अच्छे वोट पाए. हनुमान बेनीवाल लगातार ओसियां विधानसभा क्षेत्र में भी प्रचार प्रसार करते है. कुछ वक्त पहले हुए पंचायती राज के चुनावों में भी मदेरणा परिवार के गढ में सेंधमारी करने में बेनीवाल कामयाब रहे थे. इसके अलावा मारवाड़ के जाट बहुल इलाके में जब राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी अपना विस्तार कर रही है. तो कांग्रेस के लिए भी ये जरुरी है कि उसे रोकने के लिए किसी जाट नेता को ही मैदान में उतारा जाए. इससे पहले जब हरीश चौधरी राजस्व मंत्री थे. तब जाट होने के नाते हरीश चौधरी को ही नागौर का प्रभारी मंत्री बनाकर भी बेनीवाल को घेरने की कोशिश की गई थी. 

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