पशुपालकों के लिए पशुपालन घाटे का सौदा, महंगे चारे ने बनाया बेचारा
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पशुपालकों के लिए पशुपालन घाटे का सौदा, महंगे चारे ने बनाया बेचारा

चारे के भावों में एकाएक हुई बढ़ोत्तरी ने पशुपालकों को बेचारा बना दिया है. उनके सामने अपना और पशु दोनों का परिवार पालने का संकट खड़ा हो गया है. एक तरफ जहां महंगाई के दौर में गुजारा कर पाना मुश्किल है.

महंगे चारे ने बनाया बेचारा

Sangod: चारे के भावों में एकाएक हुई बढ़ोत्तरी ने पशुपालकों को बेचारा बना दिया है. उनके सामने अपना और पशु दोनों का परिवार पालने का संकट खड़ा हो गया है. एक तरफ जहां महंगाई के दौर में गुजारा कर पाना मुश्किल है. वहीं चारे के भाव बहुत अधिक बढने से पशुपालकों के लिए पशुओं का पालन भी बड़ी परेशानी बन रहा है, जिसमें पशुपालकों को परिवार के भरण पोषण में भी परेशानी आने लगी है. 

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वहीं महंगे चारे के दौर में दुधारु पशु का दूध बेचकर तो बमुश्किल उसकी खुराक निकाली जा रही है लेकिन छोटे और दूध ना दे पाने वाले पशुओं को पालना पशुपालकों के लिए टेड़ी खीर साबित हो रहा है. हालत यह है कि मुहं मांगा दाम देने के बावजूद पशुपालकों को मांग अनुरूप चारा नहीं मिल रह. गौशालाओं में भी चारे के अभाव में स्थिति बिगड़ती जा रही है. चारे के अभाव में पशुपालक भी ऐसे बिना दूध देने वाले पशुओं को घरों में बांधने के बजाय खुले छोड़ रहे है, जिसके चलते शहरऔर क्षेत्र में आवारा गोवंश की संख्या भी दिनों-दिन बढ़ती जा रही है.

इसलिए खड़ा हुआ चारे का संकट
जानकारों की मानें तो राजस्थान में मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और हरियाणा से आने वाले पशुआहार (भूसे) पर वहां की सरकारों ने प्रतिबंध लगा दिया. इससे पशुपालकों के सामने संकट खड़ा हो गया है. बताया जा रहा है कि इन राज्यों से प्रतिमाह 200 से 300 ट्रक भूसे के प्रदेश में आते थे. वो चारा तो अब आ नहीं रहा उल्टा क्षेत्र का चारा रोजाना ट्रक और ट्रोलियों में भरकर बाहरी व्यापारी अपने यहां ले जा रहे है. पशुपालकों का कहना है कि राज्य सरकार को भी अपने राज्य से दूसरे राज्य में चारे के परिवहन पर रोक लगानी चाहिए तभी चारे का संकट दूर होगा.

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पशुपालन घाटे का सौदा
चारे के दामों में बेतहासा बढ़ोतरी से मौजूदा समय में पशुपालन घाटे का सौदा साबित हो रहा है. पशु की दूध देने की क्षमता 20 लीटर मानते हुए चारे की वर्तमान दर और 40 रूपए लीटर दूध की दर से हिसाब लगाया जाए तो दूध से प्राप्त दाम और चारे के दाम लगभग बराबर हैं, ऐसे में पशुपालकों के लिए पशु का पालन कर पाना घाटे का सौदा साबित हो रहा है, क्योंकि पशुपालन के लिए स्थान का होना, पानी बिजली समेत अन्य खर्च और पशुपालक की मेहनत भी शामिल है.

मुहं मांगा दाम, फिर भी किल्लत
सांगोद क्षेत्र में वर्तमान में चालीस हजार से अधिक पशुधन है. प्रति पशु को प्रतिदिन लगभग 10 किलो भूसे की आवश्यकता होती है. वहीं दूसरी ओर पूर्व में भूसा 800 से 900 रूपए क्विंटल तक मिल जाता था. वह वर्तमान में चार से पांच हजार रूपए ट्रोली मिल रहा है. इस स्थिति में भी पशुपालकों को मुहंगामा दाम देने के बावजूद पर्याप्त चारा नहीं मिल रहा. गौशालाओं में भी चारे के अभाव में पशुओं को रखना गौशाला संचालकों के लिए बड़ी परेशानी साबित हो रहा है.

Report: Himanshu Mittal

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