राज्यपाल ने लौटाया दंड विधेयोक कानून, कहा- केंद्र पहले इसे कानून का रूप दे चूका
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राज्यपाल ने लौटाया दंड विधेयोक कानून, कहा- केंद्र पहले इसे कानून का रूप दे चूका

 राज्यपाल कलराज मिश्र ने दंड विधियां संशोधन विधेयक 2018 को वापस लौटा दिया है. इसे लौटाते हुए संविधान के अनुच्छेद 200 का हवाला दिया और इसे समवर्ती सूची का विषय बताया. और कहा कि केंद्र पहले ही इस पर कानून बना चूंका है.

राज्यपाल ने लौटाया दंड विधेयोक कानून, कहा- केंद्र पहले इसे कानून का रूप दे चूका
jaipur news: राज्यपाल कलराज मिश्र ने तत्कालीन बीजेपी सरकार के समय साल 2018 में पारित दंड  विधियां संशोधन विधेयक को वापस लौटा दिया है . राज्यपाल ने 9 मार्च 2018 को पारित संशोधन विधेयक को लौटाते हुए केन्द्र के कानून और संशोधित विषय को समवर्ती सूची का मामला होने का हवाला  दिया है. तत्कालीन बीजेपी सरकार ने 12 वर्ष तक की बच्चियों के साथ दुष्कर्म और सामूहिक दुष्कर्म के मामलों में मृत्यु दण्ड के प्रावधान करते हुए यह विधेयक विधानसभा में पारित कराया था.
 
स्पीकर डॉ सीपी जोशी ने कहा कि राज्यपाल  से दण्ड विधियां (राजस्थान संशोधन) विधेयक, 2018 (2018 का विधेयक संख्या 10) के सम्बन्ध में संदेश प्राप्त हुआ है. स्पीकर ने राज्यपाल का संदेश पढ़ते हुए कहा कि
'यतः मैंने दण्ड विधियां (राजस्थान संशोधन) विधेयक, 2018 (2018 का विधेयक संख्या 10) के प्रावधानों को देखा है, जो कि 9 मार्च, 2018 को राजस्थान विधान सभा द्वारा पारित किया गया है.'
दण्ड विधियां (राजस्थान संशोधन) विधेयक, 2018 के द्वारा मूल अधिनियम भारतीय दण्ड संहिता 1860 (1860 का केन्द्रीय अधिनियम संख्याक 45 ) की धारा 376 में 376-A के पश्चात् और 376-8 से पहले 376-AA एवं 376-D के पश्चात् और 376-E से पहले 376-DD को शामिल किया गया है.'
 
इस संशोधन में दो धाराएं 376-AA और 376-DD को जोड़ा गया था. इस संशोधन के तहत 12 वर्ष तक की बच्चियों के साथ दुष्कर्म और सामूहिक दुष्कर्म के मामलों में मृत्यु दण्ड के प्रावधान किये गए थे. इसके साथ ही अपराधी एकल होने की स्थिति में 14 वर्ष तक की सज़ा या फिर उम्र कैद के और सामूहिक दुष्कर्म के मामलों में 20 वर्ष या उम्र कैद तक के भी प्रावधान थे.
राज्यपाल के संदेश में कहा गया कि राज्य सरकार के संशोधन विधेयक में आईपीसी और सीआरपीसी के जिन प्रावधानों में संशोधन किया गया वे समवर्ती सूची के विषय थे. साथ ही यह भी कहा गया कि इन बिन्दुओं पर केन्द्र सरकार साल 2018 में पहले ही कानून में बदलाव करते हुए उसे सख्त बना चुकी है, ऐसे में राज्य के संशोधन विधेयक की प्रासंगिकता नहीं रह जाती. अप्रासंगिकता का हवाला देते हुए राज्यपाल कलराज मिश्र ने तत्कालीन बीजेपी सरकार द्वारा पारित विधेयक को वापस लौटा दिया.
 
 
केन्द्र ने क्या किये थे बदलाव?
 
राज्यपाल कलराज मिश्र ने अपने संदेश में कहा कि, '1860 एवं दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 में जो संशोधन किये गये थे, उसी विषय पर समुचित संशोधन भारत सरकार द्वारा दण्ड विधिया (संशोधन) अधिनियम, 2018 (2018 का अधिनियम संख्या 22) के द्वारा भारतीय दण्ड संहिता, 1860, दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 एवं Protection of Children from sexual offences Act, 2012 में संशोधन किये गये हैं. इस कारण दण्ड विधियां (राजस्थान संशोधन) विधेयक, 2018 के द्वारा जो संशोधन प्रस्तावित किये गये हैं, की वर्तमान में कोई आवश्यकता नहीं है.'
"इसलिए, उन्होंने इसे वापस कर दिया.
 
इसके साथ ही विधानसभा के पटल पर राज्यपाल से अनुमति प्राप्त विधेयक भी सदस्यों की जानकारी के लिए रखे गए.
1. राजस्थान अधिवक्ता कल्याण निधि (संशोधन) विधेयक, 2020,
2. राजस्थान विधान सभा (अधिकारियों तथा सदस्यों की परिलब्धियां और पेशन)
(संशोधन) विधेयक, 2022,
 
3. राजस्थान सहकारी सोसायटी (संशोधन) विधेयक, 2022,
 
4. राजस्थान विनियोग (संख्या ३) विधेयक, 2022 व
 
5. राजस्थान माल और सेवा कर (संशोधन) विधेयक, 2022

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