Rajasthan Politics : राजस्थान में विधानसभा चुनाव में एक साल से भी कम समय बचा है . दोनों ही प्रमुख राजनीतिक पार्टियां कार्यकर्ताओं के भरोसे चुनावी वैतरणी पर पार उतरने की की तैयारी कर रही है, लेकिन कार्यकर्ताओं की स्थिति क्या है, उनके मन टटोलने की कोशिश नहीं हो रही है ?
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Rajasthan Politics : राजस्थान में विधानसभा चुनाव में एक साल से भी कम समय बचा है . दोनों ही प्रमुख राजनीतिक पार्टियां कार्यकर्ताओं के भरोसे चुनावी वैतरणी पर पार उतरने की की तैयारी कर रही है, लेकिन कार्यकर्ताओं की स्थिति क्या है, उनके मन टटोलने की कोशिश नहीं हो रही है ? कार्यकर्ता दिन रात संघर्ष कर सत्ता की फसल तैयार करते हैं और काटने के लिए और कोई ही आ खड़ा होता है. कांग्रेस हो या भाजपा दोनों ही दलों के नेताओं में धड़ेबाजी के बीच कार्यकर्ता पिस कर रह गया है.
राजस्थान में कांग्रेस हो बीजेपी दोनाें ही प्रमुख दलों विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी है. दोनों ही दलों को सत्ता पर पहुंचाने के लिए कार्यकर्ता ही रात दिन एक करते हैं. कांग्रेस अधिवेशन में भी कार्यकर्ताओं को सम्मान देने की बात कही गई. कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने मंच से कहा कि कार्यकर्ताओं के दम पर ही पहले भी सत्ता में आए हैं और आगे भी सत्ता में आना है तो कार्यकर्ताओं के काम करने होंगे चाहे उनके व्यक्तिगत काम हो या सामूहिक. कार्यकर्ताओं का सम्मान रखते हुए उनके काम करने होंगे.
वहीं दूसरी ओर भाजपा भी खुद को कार्यकर्ता आधारित पार्टी बताती है. भाजपा नेता कहते हैं कि कार्यकर्ताओं के काम के आधार पर सत्ता मिलती है. ऐसे में कार्यकर्ताओं को सर्वोपरी मानते हुए आगे रखना चाहिए.
यह बात दूसरी है कि कहनें को तो दोनों ही राजनीतिक दल कार्यकर्ताओं को सम्मान की बात कहते हैं लेकिन हकीकत इससे कहीं उलट दिखाई देती है. दोनों ही दलों में गुटबाजी प्रबल रूप से हावी है, जिससे कार्यकर्ता भी बंटकर रह गए हैं. कार्यकर्ताओं के पार्टी में एक नेता के साथ दिखने पर ठप्पा लगा दिया जाता है कि वो उस नेता के कार्यकर्ता हैं. ऐसे में कई मामलों में कार्यकर्ता हैं कि पिस रहे हैं. यह कहने में भी अतिश्योक्ति नहीं है कि दो पाटन के बीच में बाकी बचा न कोय ?
कांग्रेस हो या भाजपा, कार्यकर्ताओं की सुनवाई नहीं होती है ताजा उदाहरण की बात करें तो कांग्रेस सरकार में चार साल बाद भी राजनीतिक नियुक्तियों के पूरे पद भरे नहीं जा सके, वहीं संगठनात्मक रूप से भी नियुक्ति बाकी है. कांग्रेस में 52 हजार बूथों पर बीएलए की नियुक्ति की जानी है. नेता बंटे हुए हैं कार्यकर्ता अलग अलग गुटों में बिखरे हुए हैं. प्रदेश प्रभारी की बैठक में मंत्रियों की चिंता गुटबाजी को लेकर छलकी. मंत्री उदयलाल आंजना को यह तक कहना पड़ा कि बड़े नेताओं की आपात गुटबाजी खत्म कराओ साब. इस '' इन फाइट'' कांग्रेस को नुकसान हो रहा है. आंजना ने बिना नाम लिए यह बात कही थी, लेकिन पीसीसी चीफ ने दो विधायकों का जिक्र किया. डोटासरा ने सालेह मोहम्मद से कहा कि '' थांको और रूपाराम जी को झगड़ो मेट ल्यो'' ''नहीं तो थे दोन्यू ही चुनाव हार ज्यास्यो''.
दूसरी ओर भाजपा की भी यही स्थिति है भाजपा में भी नेताओ ं के कई गुट बने हुए हैं. नेताओं की गुटबाजी कार्यकर्ताओं पर भारी पड़ रही है. बीजेपी की ओर से निकाली जा रही जन आक्रोश यात्राओं में कुछ जगह साफ दिखाई दे रहा है. कार्यकर्ता एक नेता की सभा में जमकर लगते हैं तो उस पर ठप्पा लगा दिया जाता है कि वो उस गुट का है. इस स्थिति की चर्चा यदा कदा पार्टी कार्यालय तक में सुनाई देती है. बहरहाल कांग्रेस हो या बीजेपी, नेताओं की गुटबाजी, कार्यकर्ताओं का समंजस चुनावों में भारी पड़ सकता है.
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