इतिहास के पन्नों में चंबल से जुड़ी हुई कई कहानियां प्रचलित है. जब चंबल का खयाल लोगों के जेहन में आता है तो डकैतों की गूंज उनके कानों में सुनाई देती है. ऐसे ही हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसे डकैत की कहानी जो अधिकार छिन जाने पर डकैत बना था.
चंबल की घाटी का जिक्र महाभारत काल में भी हुआ है. राजा रंतिदेव की वजह से भी चंबल जाना जाता रहा है. इनके शासन काल में दिल्ली से भाग कर आए तोमर राजवंश ने भी यहां पर शरण पाई थी.
मुगलों और अंग्रेजों के काल से डाकूओं की वजह से चंबल घाटी को जाना जाने लगा था. यहां के डाकूओं की देश भर में दहशत थी.
लेकिन बहुत से कम लोग जानते हैं कि चंबल का पहला डाकू कौन था. आइए हम बताने जा रहे हैं चंबल का पहला डाकू कौन था.
ऐसा कहा जाता है कि धौलपुर के वत्स गोत्रीय सामंत चंड महासेन चंबल का पहला डाकू था. जो अधिकार छीन लिए जाने पर बगावत कर डाकू बन गया था.
दिल्ली में तोमर शासन समाप्त होने के बाद धौलपुर सामंत को हटा कर मालवा के शासक राजा भोज ने अपना सामंत नियुक्त कर दिया, जो वत्स वंश के युवराज महासेन को नामंजूर था.
इसके बाद वंशानुगत अधिकार को हासिल करने के लिए महासेन बागी हो गया और चंबल के बीहड़ों में उसने अपनी सेना के साथ शरण ली.
यहां चंबल के रास्ते मालवा की तरफ जाने वाले व्यापारियों से उसने कर वसूलना शुरु कर दिया. कर न देने वालों को दंड भी देने लगा. ऐसा करने की वजह से उसके नाम के आगे व्यापारियों ने चंड जोड़ दिया.
एक तरफ शासक राजा भोज ने सांमत के कार्यभार को संभाला था, दूसरी तरफ महासेन का ये रवैय्या चंबल के इतिहास में बुरे दिनों की शुरुआत के जैसा था.