6 दिसंबर को जब बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराया (Demolition of the Babri Masjid) गया, तब उमा भारती (Uma Bharti) भी बीजेपी (BJP) और वीएचपी (VHP)के दिग्गज नेताओं के साथ मौजूद थीं. लिब्राहन आयोग ने भी उनकी भूमिका को दोषपूर्ण पाया था, जिसपर उन्होंने आरोपों से तो इनकार किया लेकिन अपना पक्ष मुखर अंदाज में रखा
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नई दिल्ली: बात 1984 से शुरू करते हैं, जब एक साधारण सी भागवतकथा वाचक ‘उमा भारती’ (Uma Bharti) पहली बार लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) लड़ीं. उस समय तो वो हार गई, लेकिन 1989 और 1991 में उन्होंने मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) की खजुराहो सीट से लोकसभा चुनाव में जीत का परचम लहराया. यहां से उन्होंने भाजपा (BJP) के किले में जगह बनाई और बता दिया कि मैं हूं प्रदेश में भाजपा की नैया की नई ‘उमा’. इसके बाद उमा भारती का राजनीतिक कद बढ़ा, राम जन्मभूमि आंदोलन (Ram Mandir Movement) में उनकी सक्रियता से, जहां से वो बुलंद हिंदुत्व नेतृत्व का चेहरा बन गईं. उमा भारती के उग्र भाषणों ने उस आंदोलन को एक अलग आयाम दिया और उम्मीद से परे महिलाओं की भागिदारी बढ़ाई.
6 दिसंबर 1992
6 दिसंबर को जब बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराया गया, तब उमा भारती भी बीजेपी और वीएचपी के दिग्गज नेताओं के साथ मौजूद थीं. लिब्राहन आयोग ने भी उनकी भूमिका को दोषपूर्ण पाया था, जिसपर उन्होंने आरोपों से तो इनकार किया लेकिन अपना पक्ष मुखर अंदाज में रखा और कहा कि मैं नैतिक जिम्मेदारी लेने को तैयार हूं. इसके बाद उन्हें अटल बिहारी सरकार में भी खास जगह मिली और उनका वर्चस्व इस बुलंदी पर चढ़ा कि उनका कद अटल बिहारी वाजपयी और लालकृष्ण आडवाणी के बाद तीसरे स्थान पर आ गया और उनकी गिनती भाजपा की कद्दावर नेताओं में होने लगी.
मध्यप्रदेश का भगवाकरण
फिर वो दौर आया जब उमा भारती के नेतृत्व में पार्टी ने मध्यप्रदेश से भगवा के हिस्से में पड़े सूखे को खत्म करने की ठानी और कर भी दिखाया. दिग्विजय सिंह के 10 साल के शासन पर ‘उमा’ के त्रिशूल ने मध्यप्रदेश की सत्ता में कमल खिला दिया और पार्टी के हिंदुत्व एजेंडे को और बुलंद कर दिया. उनके मुखर हिंदुत्व कार्ड ने मध्य-प्रदेश में कांग्रेस का सफाया किया और बीजेपी को तीन-चौथाई बहुमत से जीत दिलवाई.
उमा भारती के बड़े योगदान
राम जन्म भूमि को बचाने के लिए उमा भारती के प्रभावकारी कदम ने काफी फायदे दिए. बीजेपी के हिंदू चेहरे पर उनके नाम का तिलक लंबे समय तक लगा रहा और आज भी देखा जा सकत है. यहां तक कि पार्टी से निलंबन के बाद भी उन्होंने भोपाल से लेकर अयोध्या तक पद-यात्रा की और पार्टी की विचारधारा को और बल दिया.
उस दौरान उमा भारती ने साध्वी ऋतंभरा के साथ मिलकर अयोध्या मामले पर उन्होंने आंदोलन शुरू किया. इस आंदोलन को उमा के सशक्त नारे ‘राम-लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’ ने लोगों के जोश को कई गुना बढ़ा दिया.
जुलाई 2007 में रामसेतु को बचाने के लिए भी उमा भारती ने सेतु समुद्रम प्रोजेक्ट के विरोध में भूख-हड़ताल की थी.
सिंधिया परिवार से संबंध
उमा भारती का कम उम्र में बने सफल राजनैतिक सफर के पीछे सिंधिया परिवार का हाथ रहा है. वो उन्हीं की छत्रछाया में पली-बढ़ी थीं. उमा भारती ने साल 1999 में भोपाल सीट से चुनाव लड़ा और अपना दम दिखा दिया. वाजपेयी सरकार में उमा भारती ने कई मंत्रालयों जैसे मानव संसाधन विभाग, पर्यटन, खेल और युवा मामले, कोयला और खाद्यान्न मंत्रालय का पदभार संभाला. इसके बाद 2003 के चुनावों में वो मध्य-प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं. राजनीति के इन सभी पढ़ाव में सिंधिया परिवार उनके साथ रहा.
बागी बोल की बानगी
भीजेपी की कद्दावर नेताओं की फेहरिस्त में तीसरे नंबर पर कही जाने वाली उमा भारती का विश्वास जल्द ही आत्मविश्वास की ओर जाता गया और वो अपनी ही पार्टी के खिलाफ मुखर होती चली गईं. 2004 में अनुशासनहीनता के आरोप में उन्हें पार्टी की सदस्यता से बर्खास्त तक करना पड़ा. इसके बाद उन्होंने अपनी नई पार्टी ‘भारतीय जनशक्ति दल’ बनाई, लेकिन 7 जून 2011 को वो दोबारा बीजेपी में आ गईं.
2003 में मध्य प्रदेश की सत्ता पर काबिज उमा भारती को साल भर बाद ही एक बुरी खबर मिली. कर्नाटक में हुबली की एक अदालत ने दंगा भड़काने के 10 साल पुराने एक मामले में उनके खिलाफ वारंट जारी किया. कर्नाटक से उन्हें लेने पुलिस अधिकारियों की टीम मध्यप्रदेश की ओर निकल पड़ी. गिरफ्तारी की लटकती तलवार देख केंद्र के बीजेपी नेतृत्व ने उमा भारती को इस्तीफा देने के लिए मना लिया. पद छोड़ने से पहले गृहमंत्री बाबूलाल गौर का नाम उन्होंने मुख्यमंत्री पद के लिए पेश किया. इसके पीछे एक गहरी सोच थी. दरअसल बाबूलाल, उमा भारती के इतने भरोसेमंद थे कि उन्हें लगा कि जब वो कहेंगी तो बाबूलाल उनके लिए कुर्सी छोड़ देंगे. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. उस दौरान कहा गया कि उमा भारती ने बाबूलाल गौर को 21 देवी-देवताओं की कसम खिलाई थी कि वो उनकी वापसी पर पद छोड़ देंगे. उमा की उम्मीदें टूटने पर वो बौखला गईं और बीजेपी से बागी हो गईं और यहां से पार्टी और उमा के बीच मनमुटाव के बीज बो गए.
उमा की घर वापसी
2005 के निलंबन से लगभग 6 साल के राजनीतिक वनवास के बाद 2011 में उमा भारती की भाजपा में घर वापसी हुई. इसका श्रेय तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी को दिया जाता है. उनकी वापसी को लेकर शुरू से ही पार्टी में विरोधाभास दिखाई देता रहा. विरोध करने वालों में सुषमा स्वराज और अरुण जेटली जैसे नेता भी थे. लेकिन समय के साथ और उमा के व्यक्तित्व के चलते धीरे-धीरे पार्टी उन्हें अपनाने लगी. उनकी राजनीति पर पकड़ ही कहेंगे कि आज फिर वो भारतीय जनता पार्टी में उसी दमदार अंदाज में काम कर रही हैं.
विचारों को किताबों में उतारा
हिंदू धर्म की अच्छी जानकारी और रुचि होने के चलते उमा भारती ने अपने विचारों को किताबों में उतारा और लोगों तक पहुंचाया. उनकी अब तक प्रकाशित हो चुकी किताबें हैं - स्वामी विवेकानंद (1972), पीस ऑफ माइंड (अफ्रीका-1978),मानव एक भक्ति का नाता ( 1983).