यहां मनाया जाता है चैत्र नवरात्रि में Dussehra, हिंदू मुस्लिम मिलकर काटते हैं रावण की नाक
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यहां मनाया जाता है चैत्र नवरात्रि में Dussehra, हिंदू मुस्लिम मिलकर काटते हैं रावण की नाक

वैसे तो शारदीय नवरात्रि के बाद दशहरे (Dussehra) पर रावण दहन होता है, लेकिन रतलाम जिले (Ratlam) के चिकलाना गांव में चैत्र नवरात्रि के बाद दशहरा मनाया जाता है और यह दशहरा भी रावण दहन कर नहीं बल्कि रावण की नाक काटकर मनाया जाता है.

यहां मनाया जाता है चैत्र नवरात्रि में Dussehra, हिंदू मुस्लिम मिलकर काटते हैं रावण की नाक

चंद्रशेखर सोलंकी/रतलाम: वैसे तो शारदीय नवरात्रि के बाद दशहरे (Dussehra) पर रावण दहन होता है, लेकिन रतलाम जिले (Ratlam) के चिकलाना गांव में चैत्र नवरात्रि के बाद दशहरा मनाया जाता है और यह दशहरा भी रावण दहन कर नहीं बल्कि रावण की नाक काटकर मनाया जाता है. रावण की नाक काटने का कारण यह बताया जाता है कि रावण ने माता सीता का हरण किया था इसलिए नारी के अपमान के कारण रावण की नाक काटकर उसे अपमानित किया जाता है.

आमने सामने रहती है राम-रावण की सेना
इस दिन रावण की नाक काटने के लिए गांव के बाहर एक मिट्टी के रावण की प्रतिमा बनाई जाती है और हर साल इस रावण की नाक काटी जाती है. रावण की नाक काटने की परम्परा को भी अनूठे तरीके से पूरा किया जाता है, जिसे देखने आसपास के गांव व अन्य जिलों के लोग भी आते हैं. चैत्र नवरात्रि के अगले दिन देर शाम को गांव के राम मंदिर से एक चल समारोह निकलता है जिसमें राम और लक्ष्मण के किरदार बने 2 युवक साथ होते हैं. राम की सेना के रूप में यह चल समारोह रावण की प्रतिमा तक जाता है, जहां पहले से ग़ांव के अन्य लोग रावण के आसपास रावण की सेना बनकर मौजूद होते हैं.

सूर्यास्त के समय कटती है रावण की नाक
रावण और राम की सेना के बीच वाक युद्ध होता है यानि आमने सामने एक दूसरे पर कटाक्ष करते हैं. रावण की प्रतिमा के साथ खड़े लोग रावण की जयकार करते हुए सामने राम की सेना को ललकारने वाली टिप्पणियां करते हैं. दूसरी तरफ खड़ी राम की सेना के पक्ष से लोग जवाबी हमला करते हैं. अंत मे ठीक सूर्यास्त के समय राम लक्ष्मण के हाथों एक बड़े तीर से रावण की प्रतिमा की नाक पर वार किया जाता है और फिर जय श्री राम के जयकारों के साथ यह दशहरा पर्व सम्प्पन हो जाता है.

हिन्दू-मुस्लिम मिलकर काटते हैं नाक
इस परम्परा के निर्वाह में बड़ा संदेश देते हुए साम्प्रदायिक सौहार्द की तस्वीर भी देखने को मिलती है. दरअसल इस पूरी परम्परा निर्वाह में गांव के न सिर्फ हिन्दू बल्कि मुस्लिम समुदाय भी साथ में मिलकर इस भव्य आयोजन में साथ तैयारी करते हैं और रावण व राम की सेना में शामिल भी होते हैं. आपसी सौहार्द के साथ इस परंपरा का हिन्दू मुस्लिम दोनों समाज मिलकर सालों से निर्वाह करते आ रहे हैं.

 

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