स्वर्णिम अक्षरों में लिखी संविधान की मूल प्रति आज भी है MP की इस लाइब्रेरी की शान, जानिए क्यों है खास
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स्वर्णिम अक्षरों में लिखी संविधान की मूल प्रति आज भी है MP की इस लाइब्रेरी की शान, जानिए क्यों है खास

सेंट्रल लाइब्रेरी प्रबंधन का कहना है कि, 'यह हमारे लिए गौरव की बात है कि संविधान की मूल प्रति हमारे पास है. इसे देखने के लिए दूर दराज से लोग आते हैं.

फाइल फोटो

ग्वालियरः पूरा देश आज संविधान दिवस मना रहा है. 26 नवंबर 1949 को भारत का संविधान बनकर तैयार हुआ था. संविधान के बारे में, उसके बनने के सफर से लेकर उसकी विशेषताओं के बारे में सबने सुना या पढ़ा है. लेकिन ऐसे बहुत कम लोग हैं जिन्होंने वास्तव में संविधान की मूल प्रति को देखा हो. इतना पढ़ने के बाद हो सकता है आपके मन में भी यह उत्सुकता जागी हो. तो आइये हम आपको दिखाते हैं कि हमारे संविधान की मूल प्रति आखिर कहां रखी हुई है.

बता दें कि ग्वालियर की सेंट्रल लाइब्रेरी में संविधान की मूल प्रति आज भी सुरक्षित रखी है. 1 मार्च 1956 को ये प्रति यहां लाई गई थी. उस वक्त देश के अलग अलग हिस्सों में संविधान की कुल 16 मूल प्रतियां भेजी जा रहीं थी. उस समय ग्वालियर, मध्य प्रदेश के उन इकलौते शहरों में एक था जहां इस मूल प्रति को भेजा गया. संविधान की मूल प्रति ग्वालियर सेंट्रल लाइब्रेरी की शान में आज भी चार चांद लगा रही है.

सेंट्रल लाइब्रेरी प्रबंधन का कहना है कि, 'यह हमारे लिए गौरव की बात है कि संविधान की मूल प्रति हमारे पास है. इसे देखने के लिए दूर दराज से लोग आते हैं. ये प्रति कई मायनों में खास है. सबसे खास बात तो यह है कि इसके आवरण पृष्ठ पर स्वर्ण अक्षर अंकित हैं. प्रति के कुल 231 पेज हैं और इसमें संविधान के अनुच्छेद 344 से लेकर 351 तक उल्लेखित हैं. इतना ही नहीं संविधान सभा के 286 सदस्यों के मूल हस्ताक्षर भी इस प्रति में मौजूद हैं. इनमें बाबा साहब भीमराव अंबेडकर से लेकर डॉ राजेंद्र प्रसाद और फिरोज गांधी के हस्ताक्षर तक शामिल हैं.

मूल प्रति में दर्ज हर अनुच्छेद की शुरुआत में प्रतीकात्मक एक विशेष चित्र प्रकाशित किया गया है. अगर हम भारतीय संविधान के निर्माण पर नजर डालें तो हम पाते है कि संविधान निर्माण के लिए 29 अगस्त 1947 को ड्राफ्टिंग का गठन हुआ और लगभग दो साल बाद 26 नबम्बर 1949 को पूर्ण रूप से संविधान तैयार हो गया. संविधान के निर्माण में कुल 284 सदस्यों का सहयोग रहा. संसदीय समिति ने इसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया. उस समय इसकी कुछ मूल प्रतियां बनाई गई थी जिनमें से एक प्रति आज भी ग्वालियर की सेन्ट्रल लाइब्रेरी में रखी हुई है.

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