3 बीवियों की मौत के बाद ले रहे थे जोग! राजनीति में आए तो तहलका मचा दिया; ऐसी हुई मौत
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3 बीवियों की मौत के बाद ले रहे थे जोग! राजनीति में आए तो तहलका मचा दिया; ऐसी हुई मौत

यूपी की राजनीति जितनी कमाल की है, वहां के सीएम भी एक से बढ़कर एक हुए हैं. उन्‍होंने राजनीति में वो मुकाम पाया जिसे पाना आसान न था. 

फाइल फोटो

नई दिल्‍ली: उत्‍तर प्रदेश की राजनीति में कई ऐसे राजनेता हुए जो देश की राजनीति में आजादी से पहले और बाद में छाए रहे. यह आजादी मिलने से पहले भी भारत सरकार में बड़े पदों पर रहे और बाद में भी राज्‍यों के सीएम बने. लेकिन दोनों दौर की राजनीति और राजनीति करने के तरीके में बहुत फर्क था. आज हम राजनीति की दृष्टि से सबसे ज्‍यादा पॉवरफुल माने जाने वाले राज्‍य उत्‍तर प्रदेश के एक ऐसे मुख्‍यमंत्री के बारे में जानते हैं, जिन्‍होंने दोनों दौर में राजनीति की फिर भी उनकी मौत बेहद गरीबी में हुई. 

  1. स्‍वतंत्रता आंदोलन से जुड़े थे डॉ.संपूर्णानंद
  2. विधायक से लेकर सीएम की कुर्सी तक पहुंचे 
  3. आखिरी दिन बहुत मुश्किल में गुजरे   

जोग लेने वाले थे लेकिन राजनीति में आ गए 

1 जनवरी 1890 को बनारस में जन्‍म डॉ. संपूर्णानंद ने पत्रकारिता की, काशी विद्यापीठ में पढ़ाया और फिर राजनीति में कदम रखा. राजनीति में आने की वजह भी रोचक है. दरअसल, संपूर्णानंद की एक के बाद एक 3 बीवियों की मौत हो गई. इसके बाद उन्‍होंने दुनिया से जोग लेने का मन बना लिया लेकिन फिर स्वतंत्रता आंदोलन इनको जिंदगी में वापस खींच लाया. और फिर वे राजनीति में ऐसे घुसे कि यूपी के सीएम बनकर ही माने. 

आजाद भारत के पहले सांसदों में हुए शुमार 

पहली बार 1926 में विधानसभा पहुंचे. इसके बाद वे शिक्षामंत्री बने, फिर होम, वित्‍त मंत्रालय भी संभाले. कुल मिलाकर उनका कद लगातार बढ़ता गया. 1952 में जब चुनाव हुए तो आजाद भारत के पहले सांसदों में शामिल होने के लिए उन्‍होंने विधानसभा चुनाव लड़ने से मना कर दिया. मना-थपाकर उन्‍हें दक्षिण बनारस से लोकसभा का टिकट दिया गया. 

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1954 में चमकी किस्‍मत 

पहले भी शिक्षा मंत्री प्‍यारेलाल शर्मा के इस्‍तीफे के कारण शिक्षा मंत्री का दायित्‍व मिला था, एक बार फिर ऐसे ही सीएम की कुर्सी मिल गई. इस बार तत्‍कालीन मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत के केंद्र में जाने के कारण वे सीएम बने. 1954 में सीएम की कुर्सी पर बैठे लेकिन कुछ साल बाद ही यूपी में कांग्रेस के हालात बदलते और बिगड़ते गए. 1962 में संपूर्णानंद ने सीएम पद से इस्‍तीफा दिया. इसके बाद तो हालात ऐसे हुए कि 1967 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के कई दिग्‍गज नेता हार गए. इनमें कमलापति त्रिपाठी भी शामिल थे. 

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बहुत गरीबी में गुजरे आखिरी दिन 

सीएम की कुर्सी छिनने के बाद संपूर्णानंद को राज्‍यपाल भी बनाया गया. इसके बाद उन्‍होंने राजनीति से रिटायरमेंट ले लिया लेकिन स्थितियां ऐसी बिगड़ीं कि जिंदगी के आखिरी दिन मुश्किल में पड़ गए. संपूर्णानंद की आर्थिक स्थिति बेहद खराब हो गई और उनकी आर्थिक मदद करने के लिए कुछ लोग पैसे भेजा करते थे. कुछ ही समय बाद 1969 में संपूर्णानंद हमेशा के लिए चिरनिद्रा में सो गए. 

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