सिंधु जल समझौते पर पीएम मोदी ने की समीक्षा बैठक, संधि के पुनर्विचार पर सरकार गंभीर
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सिंधु जल समझौते पर पीएम मोदी ने की समीक्षा बैठक, संधि के पुनर्विचार पर सरकार गंभीर

जम्‍मू-कश्‍मीर के उरी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच पैदा हुए तनाव के मद्देनजर मोदी सरकार ने सोमवार को सिंधु जल समझौते की समीक्षा की। प्रधानमंत्री मोदी ने आज सिंधु जल संधि से संबंधित बैठक की अध्यक्षता की। सिंधु जल संधि को लेकर दो घंटे तक चली इस बैठक में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, विदेश सचिव, जल संसाधन सचिव और प्रधानमंत्री कार्यालय के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहे।

फाइल फोटो: (प्रतीकात्‍मक तौर पर)

नई दिल्‍ली : भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को पाकिस्तान के साथ सिंधु जल समझौते की समीक्षा के लिए बुलाई बैठक की अध्यक्षता की। इस बैठक में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल, विदेश सचिव एस जयशंकर, जल संसाधन सचिव एवं प्रधानमंत्री कार्यालय के अन्य अधिकारी उपस्थित थे। सिंधु जल संधि को लेकर दो घंटे तक चली इस बैठक में समझौते की समीक्षा की गई। इसके फायदे और नुकसान पर भी चर्चा की गई।

सूत्रों के अनुसार, भारत फिलहाल ये समझौता तोड़ने के पक्ष में नहीं है। सिंधु समझौते पर दो घंटे तक चली समीक्षा बैठक में पीएम ने सीनियर अधिकारियों से चर्चा की। बताया जा रहा है कि पीएम इस मसले पर विदेश, रक्षा और जल विशेषज्ञों से भी राय लेंगे। पहले ये माना जा रहा था कि इस समझौते को लेकर कोई बड़ा फैसला लिया जा सकता है। वहीं, सूत्रों के अनुसार सरकार इस समझौते के पुनर्विचार को लेकर गंभीर है। पाकिस्‍तान को ज्‍यादा पानी लेने से रोका जा सकता है। संधि तोड़े बिना अपने हिस्‍से का पानी लेने पर विचार किया गया।

यह समीक्षा बैठक 18 भारतीय सैनिकों की जान लेने वाले उरी आतंकी हमले का पाकिस्तान को मुनासिब जवाब देने के विकल्पों पर विचार के सिलसिले में बुलाई गई। भारत में यह मांग लगातार बढ़ रही है कि आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए भारत सिंधु नदी के पानी के बंटवारे से जुड़े इस समझौते को तोड़ दे।

सिंधु जल समझौते पर सितंबर 1960 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किये थे। इस समझौते के तहत छह नदियों, व्यास, रावी, सतलज, सिंधु, चिनाब और झेलम के पानी को दोनों देशों के बीच बांटा गया था। पाकिस्तान की यह शिकायत रही है कि उसे पर्याप्त पानी नहीं मिल रहा और इसके लिए वह एक दो बार अन्तरराष्ट्रीय मध्यस्थता के लिए भी जा चुका है।

जम्मू कश्मीर के उप मुख्यमंत्री निर्मल सिंह ने पिछले सप्ताह कहा था कि 1960 में किये गये इस समझौते के बारे में सरकार का जो भी फैसला होगा उनका राज्य इसका पूरा समर्थन करेगा। सिंह ने कहा था कि इस संधि के कारण जम्मू कश्मीर को बहुत नुकसान हुआ है। क्योंकि राज्य इन नदियों, विशेष रूप से जम्मू की चिनाब के पानी का कृषि अथवा अन्य जरूरतों के लिए पूरा उपयोग नहीं कर पाता है। उन्होंने कहा था कि केन्द्र सरकार सिंधु जल संधि के बारे में जो भी फैसला करेगी, राज्य सरकार उसका पूरा समर्थन करेगी।

उल्लेखनीय है कि भारत ने पिछले सप्ताह स्पष्ट तौर पर कहा था, इस संधि को जारी रखने के लिए ‘आपसी विश्वास और सहयोग’ बहुत महत्वपूर्ण है। सूत्रों के अनुसार केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के अधिकारियों ने प्रधानमंत्री के सामने संधि और उससे जुड़ी परियोजनाओं की एक प्रस्तुति दी। सूत्रों ने कहा कि मंत्रालय के सचिव (शशि शेखर) ने प्रधानमंत्री के सामने तथ्यों और संधि से संबंधित मौजूदा स्थिति से जुड़ी एक प्रस्तुति दी। उन्होंने कहा कि संधि को लेकर कोई भी फैसला सर्वोच्च स्तर पर लिया जाएगा, जिसकी जानकारी विदेश कार्यालय देगा। मंत्रालय की भूमिका संधि से जुड़े तथ्यों को सामने रखने तक सीमित थी।

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