हरियाणा का एक ऐसा मंदिर जहां एकसाथ दिखाई देते हैं हिन्दू, मुस्लिम और सिख
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हरियाणा का एक ऐसा मंदिर जहां एकसाथ दिखाई देते हैं हिन्दू, मुस्लिम और सिख

मान्यताओं के अनुसार कलयुग के आगमन से पहले ब्रह्मा हत्या से मुक्त होने के लिए शिवजी ने यहां यज्ञ किया था. भगवान शिव को ब्रह्मा जी का सिर काटने पर कपाली लग गई थी. जिसको दुर करने के लिए हर संभव प्रयास किया, लेकिन उन्हें सफलता न मिली. इसके बाद पार्वती माता के कहने पर शिवजी ने यहां कपालमोचन सरोवर में स्नान किया. जिसके बाद उन्हें कपाली से मुक्ति मिल गई थी. जिस कारण से इस पवित्र सरोवर का नाम कपालमोचन पड़ गया था.

हरियाणा का एक ऐसा मंदिर जहां एकसाथ दिखाई देते हैं  हिन्दू, मुस्लिम और सिख

नई दिल्लीः हमारे देश में बहुत से तीर्थ स्थल हैं, जहां लोग अपनी मनोकामनाएं लेकर जाते हैं. हमारे देश में विभिन्न धर्मों के लोग रहते है और हर धर्म का अपना पूजा करने का अलग-अलग स्थान भी है. मगर हरियाणा में एक ऐसा तीर्थ स्थल भी है, जहां तीनों धर्मों के लोग हिन्दू, मुस्लिम और सिख एक साथ शीश नवाते है. यहां पवित्र सरोवर में स्नान करके लोग मोक्ष की कामना करते हैं.

यह स्थान हरियाणा के यमुनानगर में स्थित कपालमोचन तीर्थ स्थल है. इस तीर्थ स्थल पर हर साल मेला लगता है. यहां काफी संख्या में लोग पहुंचते है. कपालमोचन तीर्थ स्थल वेदों में भी वर्णित है. यहां द्वापर, त्रेता कलयुग का इतिहास सिमटा है. शास्त्रों के मुताबिक यहां श्रीराम, श्रीकृष्ण, पांडव कौरव भी पितरों की शांति के लिए आए थे. कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद श्रीकृष्ण अर्जुन ने यहां शस्त्र धोकर अपने पितरों की शांति के लिए पूजा की थी.

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मान्यताओं के अनुसार कलयुग के आगमन से पहले ब्रह्मा हत्या से मुक्त होने के लिए शिवजी ने यहां यज्ञ किया था. भगवान शिव को ब्रह्मा जी का सिर काटने पर कपाली लग गई थी. जिसको दुर करने के लिए हर संभव प्रयास किया, लेकिन उन्हें सफलता न मिली. इसके बाद पार्वती माता के कहने पर शिवजी ने यहां कपालमोचन सरोवर में स्नान किया. जिसके बाद उन्हें कपाली से मुक्ति मिल गई थी. जिस कारण से इस पवित्र सरोवर का नाम कपालमोचन पड़ गया था. इसे सोमसर के नाम से भी जाना जाता है. इस तीर्थ स्थल पर साधु संतों की शाही भी निकलती है, जिसमें बड़ी संख्या में संत भाग लेते हैं. 

इस तिर्थ स्थल पर सबसे ज्यादा अधिक मान्यता सिख धर्म के लोगों की बताई जाती है, उनका मानना है कि यहां गुरु नानक देव जी ने अपना जन्मदिन मनाया था. यहां पहली पातशाही गुरु नानक देव दसवीं पातशाही गुरु गोबिंद सिंह के दो गुरुद्वारे हैं और गुरु गोबिंद सिंह ने दस्तरबंदी की प्रथा यहीं से शुरू की थी. भंगानी का युद्ध जीत कर वापस आते समय गुरु साहिब यहां 52 दिन तक रुके थे और यहीं से सिख समुदाय के लोगों को दस्तार का हुकुम दिया था.

वहीं मुस्लिम धर्मगुरुओं का मानना है कि यहां राजा अकबर के भी आने के साक्षय मिले है. बाबा दुधाधारी की मजार भी लोगों की आस्था का केंद्र मानी जाती है. इस तीर्थस्थल पर लोग पांच दिन तक ठहर कर स्नान करते है. यहां पर तीन सरोवर है. क्ष्रद्धालु यहां शुक्ल पक्ष की एकादशी से स्नान शुरु करके पूर्णिमा को संपूर्ण स्नान करते हैं. यहां हरियाण के जिलों और पंजाब, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, उत्तरप्रदेश से हजारों की संख्या में क्ष्रद्धालु पहुंचते है. 

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