रघुपति राघव राजा राम...चंपारण के जर्रे-जर्रे से जुड़ा गांधी का नाम
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रघुपति राघव राजा राम...चंपारण के जर्रे-जर्रे से जुड़ा गांधी का नाम

देश 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाने जा रहा है. ऐसे में आजादी दिलाने में अहम योगदान दिलाने वाले महात्‍मा गांधी का स्‍वाभाविक रूप से स्‍मरण होना स्‍वाभाविक है. आजादी के आंदोलन में गांधी युग की शुरुआत चंपारण आंदोलन से हुई.

रघुपति राघव राजा राम...चंपारण के जर्रे-जर्रे से जुड़ा गांधी का नाम

बेतिया: देश 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाने जा रहा है. ऐसे में आजादी दिलाने में अहम योगदान दिलाने वाले महात्‍मा गांधी का स्‍वाभाविक रूप से स्‍मरण होना स्‍वाभाविक है. आजादी के आंदोलन में गांधी युग की शुरुआत चंपारण आंदोलन से हुई. ऐसे में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की बात हो और चंपारण का जिक्र न हो, ऐसा नहीं हो सकता. चंपारण के जर्रे-जर्रे में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की यादें बसी हैं. ये वही चंपारण की भूमि है जहां से अंग्रेजी हुकूमत को महात्मा गांधी ने खुली चुनौती दी थी. चंपारण की इस पवित्र धरती से ही भारत के इतिहास में गांधी युग की शुरुआत हुई थी. इसी चंपारण से सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत हुई और देश को आजादी मिली.

मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म भले ही गुजरात में हुआ हो लेकिन उनकी कर्मभूमि चंपारण रही है. चंपारण के भितिहरवा आश्रम से सत्याग्रह की शुरुआत करने वाले मोहनदास करमचंद गांधी को चंपारण ने महात्मा नाम की उपाधि दी और यहीं पर उनका नाम महात्मा गांधी हो गया.

मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ. जब बात गांधी जी की हो रही हो तो चंपारण की धरती को भला हम कैसे भुला सकते हैं. गांधी जी द्वारा 1917 में संचालित चंपारण सत्याग्रह ना सिर्फ भारतीय इतिहास बल्कि विश्व इतिहास की एक ऐसी घटना है जिसने ब्रिटिश साम्राज्य को खुली चुनौती दी थी. जिसका गौरव चंपारण की पवित्र धरती को प्राप्त है.

पंडित राजकुमार शुक्ल का आमंत्रण
22 अप्रैल 1917 को चंपारण की धरती बेतिया में गांधी जी के पैर पड़े. इसके साथ ही आधुनिक भारत के इतिहास में गांधी युग की शुरुआत होती है. जहां से महात्मा गांधी ने ब्रिटिश राज को चुनौती दी. 22 अप्रैल 1917 शाम 5 बजे गांधीजी बेतिया स्टेशन पर पहुंचे. उसके बाद वहां से पैदल ही बेतिया में स्थित हजारीमल धर्मशाला तक पहुंचे और उनके पीछे लोगों की एक भीड़ धर्मशाला तक पहुंची. दरअसल चंपारण में बड़े पैमाने पर नील खेती की जा रही थी. इसमें स्थानीय किसानों और मजदूरों का अंग्रेजी हुकुमत के द्वारा शोषण हो रहा था. जिसके बाद आंदोलनकारी किसान पंडित राजकुमार शुक्ल ने गांधी जी को चंपारण में हो रहे किसानों पर जुर्म की जानकारी देते हुए उन्हें चंपारण की धरती पर आने निमंत्रण दिया. गांधी जी ने हजारीमल धर्मशाला में एक शिविर का आयोजन किया. जहां गांधी जी ने किसानों की समस्याओं को सुना और अंग्रेजों के जुल्म के मुद्दे पर सत्य और अहिंसा का हथियार बनाया. 24 अप्रैल को गांधी जी बेतिया से बैरिया के लौकरिया गांव गए. बैरिया में अंग्रेज मैनेजर गेल से मिले और बैरिया गांव में ही उन्होंने रात बिताई.

27 अप्रैल 1917 को गांधी जी बेतिया से नरकटियागंज पहुंचे. नरकटियागंज स्टेशन पर उतरने के बाद गांधी जी चिलचिलाती धूप में अपने सहयोगियों के साथ पंडित राजकुमार शुक्ल के गांव मुरली भैरहवा पहुंचे. जहां अंग्रेजों द्वारा राजकुमार शुक्ल की संपत्ति को नष्ट कर दिया गया था. जिसके बाद गांधी जी ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद को खुली चुनौती दी थी.

भितिहरवा गांधी आश्रम
अब बात चंपारण में स्थित भितिहरवा गांधी आश्रम की. गांधी जी के साथ चंपारण के जिन-जिन स्थलों को इतिहास के पन्नों में जोड़ा गया उनमें पहला मुख्य नाम भितिहरवा गांधी आश्रम का आता है. 27 अप्रैल 1917 का दिन था जब बापू राजकुमार शुक्ल के आग्रह पर बेतिया जिला मुख्यालय से 65 किलोमिटर दूर भितिहरवा गांव में पहुंचे. गांधी जी यहां देवनंद सिंह, बीरबली जी के साथ पहुंचे. भितिहरवा आश्रम का निर्माण गांधी जी ने खुद किया. जिसके लिए गांव के मठ के बाबा रामनारायण दास ने गांधी जी को आश्रम के लिए जमीन उपलब्ध कराई गई. 16 नवंबर 1917 को गांधी जी ने यहां एक पाठशाला और एक कुटिया बनाई.

20 नवंबर 1917 को भितिहरवा में कस्तूरबा गांधी, गोरख बाबू, जनकधारी प्रसाद, महादेव बाबू, हरिशंकर सहाय, सोमन जी, बालकृष्णजी और डा.देव का आगमन हुआ. 1917 में चंपारण सत्याग्रह के समय की बनी आश्रम की खपरैल कुटिया आज भी है. इसे बचाने के लिए मूल कुटिया के ऊपर एक शेड डाल दिया गया है. इस आश्रम में कस्तूरबा गांधी द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला चक्की देखा जा सकता है. इसमें गेहूं की पिसाई होती थी. यहां बापू द्वारा निर्मित टेबल भी है. बापू इस पर पढ़ाई-लिखाई करते थे और इसी पर सो भी जाते थे. बापू के पाठशाला की घंटी भी देखी जा सकती है. आश्रम परिसर में 1917 में बना कुआं भी देखा जा सकता है, इस कुएं का इस्तेमाल बापू और कस्तूरबा करते थे. 1917 में बनी कुटिया को देखने के लिए आज भी लोग दूर दूर से आते हैं. बता दें कि चंपारण सत्याग्रह के दौरान गांधी की यात्रा में जो प्रमुख स्थल शामिल रहे उनमें चनपटिया का सतवरिया, कुड़िया कोठी, साठी भी शामिल है. यहां पर मां कस्तूरबा ने शिक्षा की अलख जगाई थी. आश्रम से सटे कस्तूरबा छात्रावास हैं. छात्र बुनियादी विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करते हैं.

इस संबंध में समाज सेवी अनिरुद्द चौरसिया ने बताया कि 1917 में गांधी जी को राजकुमार शुक्ल लखनऊ अधिवेशन में बुलाने गये थे. नील की खेती से चंपारण के लोग त्रस्त थे. तीन कठिया व्यवस्था लागू कर दी गई थी. गांधी जी के आने के बाद सत्याग्रह की शुरुआत हुई और देश को आजादी मिली, चौरसिया ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक बार भितिहरवा आने की भी अपील की.

बेतिया के हरदिया कोठी में अंग्रेजो की वो जुल्म की फैक्ट्री के अवशेष आज भी है, जहां किसानों से नील की पेराई कराई जाती थी. किसानों से जबर्दस्‍ती चंपारण में नील की खेती कराई जाती थी और मवेशियों की तरह उनसे नील की पेराई भी कराई जाती थी. 6 अगस्त 1917 को एक जांच कमेटी के सदस्य के रूप में महात्मा गांधी ने इस जुल्म की फैक्ट्री की तहकीकात की थी. अंग्रेजों की जुल्म की दास्तान का जीता जागता ये नील की फैक्ट्री अवशेष है.

बेतिया जिला मुख्यालय से महज 8 किलोमिटर की दूर पर स्थित यह वही इलाका है जहां नील की खेती के नाम पर अंग्रेजी शासन द्वारा किसानों का शोषण होता रहा. हरदिया कोठी तथा अन्य कई कोठियों में आज भी गुलामी की दास्तां कहते कई प्रतीक मिल जाएंगे. ब्रिटेन आयातित कई मशीनें मिल जायेंगी. खेतों, खलिहानों और कई ऐसी पुरानी चीजे हैं जो इन खंडहर रूपी पुरानी कोठियों में इतिहास बनकर रह गई हैं. ये कोठियां और ये कारखाने गवाह हैं उस अंग्रेजी हुकूमत के जो जबरन नील की खेती के लिए तीनकठिया व पांचकठिया व्यवस्था से किसान त्रस्त थे.

निलहों ने 1900 ई. में तीनकठिया प्रणाली लागू की. इसके तहत एक बीघा जमीन में तीन कट्ठा खेत में नील लगाना किसानों के लिए अनिवार्य कर दिया गया. निलहों के दबाव में काम करने वाली रैयत औपनिवेशिक शोषण की शिकार थी. इंग्लैंड पहुंचने वाली नील की एक-एक पेटी किसानों के खून से रंगी होती थी. निलहों के शोषण से किसानों में उबाल था. किसान शेख गुलाब के नेतृत्व में एकजुट होने लगे. 1907 में शोषण से भड़के किसानों ने हरदिया कोठी के प्रबंधक ब्रूमफील्ड को दिन में ही घेर लिया. लाठी से पीटकर उनकी जान ले ली. इसके बाद अंग्रेजी हुकूमत बौखला गई. आंदोलन दबाने के लिए दमन का चक्र शुरू हो गया. शेख गुलाब को गिरफ्तार कर लिया गया. उन्हें यातना दी गई. इसके बाद किसान आंदोलन की बागडोर राजकुमार शुक्ल ने संभाली.

उन्होंने मोहनदास करमचंद गांधी को चंपारण आने का न्योता दिया. आज यहां इस पंचायत के मुखिया अरुण कुमार हैं जो बताते है कि यहीं अंग्रेजों के द्वारा जुल्म किये जाते थे लेकिन गांधी जी के आने के बाद आजादी मिली. आज यह पंचायत मनरेगा द्वारा हरा भरा है और खुशहाल है.

(रिपोर्ट: धनञ्जय द्विवेदी)