क्या है रोहिणी आयोग, जिसकी रिपोर्ट से देश में आ सकता है सियासी भूचाल?
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क्या है रोहिणी आयोग, जिसकी रिपोर्ट से देश में आ सकता है सियासी भूचाल?

रोहिणी आयोग का गठन केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल 5000 जातियों को उपवर्गीकृत करने के लिए किया गया था. इसकी जरूरत इसलिए महसूस हुई, क्योंकि एक धारणा बन गई थी कि ओबीसी की केंद्रीय सूची में शामिल कुछ ही समुदायों को 27 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिलता है. 

दिल्ली हाई कोर्ट की पूर्व चीफ जस्टिस न्यायमूर्ति जी. रोहिणी

Rohini Commission: मोदी सरकार (Modi Govt) ने संविधान के अनुच्छेद 340 के तहत अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी के उपवर्गीकरण करने के लिए 2017 में रोहिणी आयोग (Rohini Commission) का गठन किया था. संविधान के अनुच्छेद 340 में कहा गया है कि राष्ट्रपति शैक्षणिक और सामाजिक रूप से पिछडे़ वर्ग की दशाओं की जांच और उनकी दशा सुधारने के लिए आयोग का गठन कर सकते हैं. दिल्ली हाई कोर्ट की सेवानिवृत मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी. रोहिणी (G. Rohini) इस आयोग की अध्यक्ष हैं. आयोग को गठन के 12 सप्ताह में अपनी रिपोर्ट देनी थी लेकिन 6 साल बाद भी रिपोर्ट नहीं आई है और आयोग के कार्यकाल को लगातार सेवा विस्तार मिलता रहा. माना जा रहा है कि 31 जुलाई को रोहिणी आयोग की ओर से अपनी अंतिम रिपोर्ट सरकार को सौंप दी जाएगी, जिसके बाद से देश की राजनीति करवट ले सकती है. 

रोहिणी आयोग का गठन क्यों किया गया था?

रोहिणी आयोग का गठन केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल 5000 जातियों को उपवर्गीकृत करने के लिए किया गया था. इसकी जरूरत इसलिए महसूस हुई, क्योंकि एक धारणा बन गई थी कि ओबीसी की केंद्रीय सूची में शामिल कुछ ही समुदायों को 27 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिलता है. केंद्र सरकार की जाॅब्स और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिए समान अवसर सभी पिछड़ी जातियों के लोगों को मिले, रोहिणी आयोग की रिपोर्ट के माध्यम से यह सुनिश्चित किया जा सकेगा. 

रोहिणी आयोग की अब तक की फाइंडिग्स क्या कहती है?

  • रोहिणी आयोग ने 2018 में पिछले 5 साल में ओबीसी कोटा के तहत केंद्र सरकार द्वारा दी गई 1.3 लाख सरकारी नौकरियों का अध्ययन किया गया. 
  • इसके अलावा आयोग ने 2018 में पिछले तीन साल में केंद्र सरकार के संस्थानों जैसे आईआईटी, आईआईएम आदि में एडमिशन से संबंधित आंकड़ों का अध्ययन किया था. 
  • अध्ययन के आधार पर आयोग का कहना है कि ओबीसी के लिए आरक्षित सभी नौकरियों और एडमिशन के कोटे का 97 प्रतिशत हिस्सा ओबीसी के केवल 25 प्रतिशत लोगों को ही प्राप्त हुआ.
  • नौकरियों और एडमिशन का 24.95 फीसद हिस्सा केवल 10 प्रतिशत समुदायों को मिला. 983 ओबीसी समुदायों का नौकरियों और एडमिशन में शून्य प्रतिनिधित्व है. 
  • विभिन्न भर्तियों और एडमिशन में 994 ओबीसी उपजातियों का कुल प्रतिनिधित्व केवल 2.68 प्रतिशत ही है.

पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट ने क्या कहा था

इससे पहले 2015 में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग एनसीबीसी ने ओबीसी को अति पिछड़ा, अधिक पिछड़ा और पिछड़ा वर्ग जैसी तीन श्रेणियों में बांटने की सिफारिश की थी. एनसीबीसी ने यह भी सिफारिश की थी कि ओबीसी कोटे का लाभ अधिकांशतः प्रभावशाली समूह उठा रहे हैं, इसलिए ओबीसी के अंदर अति पिछड़ा वर्गों के लिए सब कोटा होना चाहिए.

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