पटना की बैठक में होगा विपक्षी एकता का लिटमस टेस्ट! सबकी निगाहें ममता-वाम दल और कांग्रेस-केजरीवाल पर टिकी
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पटना की बैठक में होगा विपक्षी एकता का लिटमस टेस्ट! सबकी निगाहें ममता-वाम दल और कांग्रेस-केजरीवाल पर टिकी

2019 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी एकता की बात कर रहे विपक्षी दलों को एक ही मंच पर कोलकाता में सबने देखा था. तब सभी दल भाजपा के खिलाफ इकट्ठा होने के लिए हाथ मिलाए खड़े थे लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव तक आते-आते सबकी राहें जुदा हो गईं.

(फाइल फोटो)

Opposition Parties Meeting: 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी एकता की बात कर रहे विपक्षी दलों को एक ही मंच पर कोलकाता में सबने देखा था. तब सभी दल भाजपा के खिलाफ इकट्ठा होने के लिए हाथ मिलाए खड़े थे लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव तक आते-आते सबकी राहें जुदा हो गईं. अब एक बार फिर 2024 में होनेवाले लोकसभा चुनाव के पहले विपक्षी एकता के स्वर सुनाई पड़ने लगे हैं. हालांकि इस बार विपक्षी एकता के लिए विपक्षी दलों को इकट्ठा करने का काम नीतीश कुमार ने अपने हाथ में लिया है जो 2019 में एनडीए गठबंधन का हिस्सा था और उस समय की विपक्षी एकता की मुहिम का कड़ा विरोध कर रहे थे. 

बता दें कि इस बार कांग्रेस की हामी भरने के बाद नीतीश कुमार की इस विपक्षी एकता की मुहिम की अगुवाई कर रहे हैं. वही सभी विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने की जुगत में लगे हुए हैं. ऐसे में कर्नाटक चुनाव के नतीजे आने के बाद से इस मुहिम को और ताकत मिली है. हालांकि कांग्रेस की इस जीत के बाद से ही क्षेत्रीय दलों को एक प्रकार का डर भी सताने लगा है. क्योंकि क्षेत्रीय दल कांग्रेस के वट बैंक पर ही कुंडली मारकर बैठे हैं और अपने प्रदेश में अपनी ताकत बढ़ा चुके हैं. ऐसे में उनको डर है कि अगर कांग्रेस की स्थिति में थोड़ा भी सुधार हुआ तो इसका उनकी राजनीतिक सेहत पर ज्यादा नुकसान होगा. 

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इस सब के बीच बिहार की राजधानी पटना में 12 जून को विपक्षी दलों की बड़ी बैठक होनेवाली है. इसे अब विपक्षी एकता के लिटमस टेस्ट के तौर पर देखा जा रहा है. इस बैठक में भाजपा के खिलाफ 18 पार्टियों के नेता के शामिल होने की सूचना मिल रही है. जहां लोकसभा चुनाव को लेकर रणनीति, सीटों के बंटवारे, साझा मैनिफेस्टो सहित तमाम मुद्दों पर मंथन किया जाना है. इस बैठक में कांग्रेस की तरफ से मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी के अलावा दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल, सपा नेता अखिलेश यादव, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन, एनसीपी नेता शरद पवार, तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन, शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट के नेता उद्धव ठाकरे, वामदल से डी राजा और सीताराम येचुरी, जम्मू कश्मीर से उमर अबदुल्ला और महबूबा मुफ्ती के शामिल होने की संभावना है.

ऐसे में पहले तो यह देखना होगा कि क्या ममता बनर्जी और वाम दल एक ही मंच पर एक साथ आने को तैयार होते हैं. क्योंकि ममता बनर्जी कई बार कह चुकी है कि वह वाम दलों के साथ गठबंधन का हिस्सा नहीं बनेगी. पश्चिम बंगाल यानी उनके राज्य में उनकी टक्कर वैसे भी वाम दलों से ही है. दूसरी तरफ कांग्रेस को लेकर भी ममता का कोई अच्छा इतिहास नहीं रहा है. बता दें कि कांग्रेस से अलग होकर ही ममता ने टीएमसी का गठन किया था. फिर वामदलों को पटखनी दी. हाल ही में पश्चिम बंगाल में हुए एक सीट पर उपचुनाव में कांग्रेस और वामदल के समर्थित उम्मीदवार ने ममता की पार्टी के उम्मीदवार को हरा दिया इसकी टीस भी ममता के मन में है. इसके साथ ही ममता को वह याद भी है कि पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी के खिलाफ वाम दल और कांग्रेस गठबंधन में थी. ऐसे में क्या ममता बनर्जी डी राजा और सीताराम येचुरी के साथ को इस गठबंधन में कबूल कर पाएगी. 

दूसरी तरफ अरविंद केजरीवाल हैं. जिनके साथ केंद्र सरकार की ठनी हुई है. एक अध्यादेश को लेकर केंद्र और केजरीवाल की सरकार आमने-सामने है और वह विपक्ष के सहयोग के लिए इस प्रदेश से उस प्रदेश तक भटक रहे हैं. कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और नेता राहुल गांधी से अरविंद केजरीवाल ने मिलने का समय मांगा है लेकिन केजरीवाल को कई दिन बीत जाने के बाद भी मिलने का समय नहीं मिल रहा है. ऊपर से कांग्रेस के साथ अगर गठबंधन का वह हिस्सा बनते हैं तो उन्हें पता है कि दिल्ली की कई लोकसभा सीटें उन्हें कांग्रेस के हिस्से में देनी होगी जो शायद ही केजरीवाल कुबूल कर पाएंगे. अभी तो वह अध्यादेश के खिलाफ विपक्षी लामबंदी को लेकर इस गठबंधन का हिस्सा बन सकते हैं लेकिन उनकी पार्टी की तरफ से भी मंशा स्पष्ट कर दी गई है कि पार्टी देश भर में लोकसभा चुनाव अपने दम पर लड़ेगी. 

ऐसे में विपक्षी एकता की इस कवायद को एक लिटमस टेस्ट के तौर पर ही देखा जाना चाहिए क्योंकि अभी सबकी निगाह इस बात पर टिकी पड़ी है कि क्या इस नए गठबंधन के बनने पर सभी दल अपने सियासी फायदे को किनारा करके इससे होने वाले नुकसान को पचा पाएंगे. साथ ही यह भी कि क्या कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दल की बात मानने के लिए सभी दल तैयार होंगे. क्या सीटों के बंटवारे की बात पर सबकी एक राय बन पाएगी. आखिर इस गठबंधन की तरफ से पीएम पद के चेहरे के लिए क्या सभी दलों की स्वीकार्यता एक जैसी होगी? 

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