जीतनराम मांझी का दिल्ली दौरा और बिहार की राजनीति में सियासी तूफान, अमित शाह से मुलाकात का ये कैसा असर
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जीतनराम मांझी का दिल्ली दौरा और बिहार की राजनीति में सियासी तूफान, अमित शाह से मुलाकात का ये कैसा असर

एक तरफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) केंद्र की मोदी सरकार (Modi Govt) के खिलाफ विपक्षी एकता की कवायद में जुटे हैं तो दूसरी ओर उन्हीं की सरकार में सहयोगी दल जीतन राम मांझी (Jitan Ram Manjhi) महागठबंधन (Mahagathbandhan) को झटका देने का संकेत दे रहे हैं.

जीतन राम मांझी

एक तरफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) केंद्र की मोदी सरकार (Modi Govt) के खिलाफ विपक्षी एकता की कवायद में जुटे हैं तो दूसरी ओर उन्हीं की सरकार में सहयोगी दल जीतन राम मांझी (Jitan Ram Manjhi) महागठबंधन (Mahagathbandhan) को झटका देने का संकेत दे रहे हैं. जब नीतीश कुमार दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Khadge) और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) से मुलाकात कर रहे थे तो जीतनराम मांझी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) के साथ कोई खिचड़ी पका रहे थे. अमित शाह से मुलाकात के बाद जीतनराम मांझी ने ऐसे कई बयान दिए हैं, जिससे लगता है कि उनके मन में कुछ चल रहा है और वे नीतीश कुमार को झटका दे सकते हैं. जीतनराम मांझी के बदले रुख से महागठबंधन में खलबली है और तरह तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं. 

बता दें कि 2015 में नीतीश कुमार से लग होने के बाद जीतनराम मांझी ने खुद की नई पार्टी बनाई थी. उनके बेटे अभी नीतीश सरकार में मंत्री पद की शोभा बढ़ा रहे हैं. और सबसे बड़ी बात यह कि पिछले 8 साल में वे तीन बार पलटी मार चुके हैं. इस तरह पलटी मारने में नीतीश कुमार की तरह उनका भी कोई सानी नहीं है. अब सोचेंगे कि जीतनराम मांझी को लेकर तरह तरह की अटकलें क्यों लगाई जा रही हैं, क्योंकि पिछले 3 दिनों में जीतनराम मांझी ने 3 अलग अलग बयान जारी किए हैं. 

  • जीतनराम मांझी ने 16 अप्रैल को कहा था कि महागठबंधन से दबाव है कि मैं अपनी पार्टी का जेडीयू में विलय कर लूं. इस पर अब फैसला लेने का समय आ गया है. 
  • मांझी ने अगले दिन यानी 17 अप्रैल को कहा, मेरी पत्नी सुझाव देती है कि मैं नीतीश कुमार से कभी न लड़ूं, क्योंकि उन्होंने मुझे मुख्यमंत्री बनाया था और मेरे बेटे को मंत्री. 
  • 18 अप्रैल को मांझी ने कहा कि शराबबंदी के मामले में सर्वदलीय बैठक बुलाए जाने की जरूरत है और मैं इसे लेकर सचिन पायलट की तरह नीतीश कुमार के खिलाफ अनशन पर बैठूंगा. 

जीतनराम मांझी की क्या है नाराजगी

  • दरअसल, मांझी नीतीश सरकार में अधिक भागीदारी चाहते हैं. वे 2021 से ही ज्यादा भागीदारी की मांग कर रहे हैं, जो पूरी नहीं की जा रही है. अभी केवल उनके बेटे संतोष सुमन ही नीतीश सरकार में मंत्री हैं. अभी उनकी पार्टी के 4 विधायक और एक विधान पार्षद हैं. 5 में से 3 पद मांझी के परिवार के सदस्यों के पास है. 
  • मांझी की एक और नाराजगी है, वो है- लोकसभा सीट को लेकर सस्पेंस. मांझी बिहार की राजनीति में बेटे को सेट कर खुद दिल्ली की राजनीति करना चाहते हैं और इसके लिए गया लोकसभा सीट खुद के लिए मांग रहे हैं. अभी गया सीट जेडीयू के पास है और विजय मांझी वहां से सांसद हैं. 2019 में जीतनराम मांझी गया लोकसभा सीट से चुनाव हार गए थे. 
  • 2020 में हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा की जिन सीटों पर जीतनराम मांझी की पार्टी को जीत मिली थी, उनमें इमामगंज, बाराचट्टी, टिकारी और सिकंदरा सीट शामिल है. इन चारों सीटों पर राजद मजबूत रही है. माना जा रहा है कि इनमें से 2 सीटों बाराचट्टी और टिकारी पर राजद की ओर से पेशबंदी हो सकती है और मांझी इस बात को बेहतर तरीके से जानते हैं. इसलिए अभी से प्रेशर बना रहे हैं. 

शाह से मुलाकात में क्या हुई बात 

13 अप्रैल को जीतनराम मांझी दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह से मिले. मांझी के साथ पार्टी के दिल्ली अध्यक्ष भी मौजूद थे. मुलाकात के बाद हालांकि मांझी ने यह कहकर सवालों को टाल दिया कि वे श्रीकृष्ण सिंह और दशरथ मांझी को भारत रत्न देने की मांग करने आए थे. उधर, शाह से मुलाकात के बाद पार्टी की कार्यकारिणी की बैठक में जीतनराम मांझी बोले, महागठबंधन और एनडीए दोनों से हमारी पार्टी के विलय का प्रेशर है लेकिन मांझी ऐसे हार मानने वाला नहीं है. इस बयान को काफी अहम माना जा रहा है. 

क्या हो सकती है बीजेपी की रणनीति

नरेंद्र मोदी के पार्टी में शीर्ष पर पहुंचने के साथ ही बीजेपी ने चुनावों को नए नजरिए के साथ लड़ना शुरू कर दिया था. 2014 में भी पार्टी ने यूपी और बिहार सहित देश के कई हिस्सों में छोटे छोटे दलों को अपने साथ जोड़ा. बिहार में लोजपा, रालोसपा, यूपी में अपना दल, सुभासपा सहित कई दलों के साथ पार्टी ने चुनाव में भाग लिया और बड़ी सफलता हासिल की. बिहार में बीजेपी ने अब तक चिराग पासवान, पशुपति पारस, उपेंद्र कुशवाहा को अपने साथ लाती दिख रही है. पार्टी मुकेश साहनी और जीतनराम मांझी को भी साथ लेने की कोशिश में है. ये सभी दल पहले भी बीजेपी के सहयोगी रह चुके हैं. 

बिहार में जितनी लोकसभा सीटें हैं, उस हिसाब से राजनीतिक दलों की संख्या बहुत ज्यादा है. इसलिए बड़े दल छोटे दलों को विलय कराने की कोशिश कर रहे हैं. इसका फायदा यह होगा कि सीट बंटवारे में ज्यादा मगजमारी नहीं करनी पड़ेगी. वहीं अलग अलग चुनाव लड़ने से सीटों को लेकर बेवजह तनाव होगा और बयानबाजी से जनता में गलत परसेप्शन भी जाता है.

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