विधानसभा चुनावों में उलझती दिख रही 'इंडिया' गठबंधन के दलों की एकता, जानें 2024 में क्या पड़ेगा इसका असर
लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा को मात देने के लिए बना इंडिया गठबंधन की एकजुटता के सामने परीक्षा की एक और घड़ी आ गई है. पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में घटक दलों के बीच सीट वितरण फॉर्मूले मे पेंच फंस सकता है.
Trending Photos
)
Patna: लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा को मात देने के लिए बना इंडिया गठबंधन की एकजुटता के सामने परीक्षा की एक और घड़ी आ गई है. पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में घटक दलों के बीच सीट वितरण फॉर्मूले मे पेंच फंस सकता है. इसकी वजह है कि सपा राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा पाने के लिए कई राज्यों में जमीन तालाश रही है. ऐसे में कांग्रेस से फिलहाल उसे सहयोग करने की कोई गुंजाइश न के बराबर दिख रही है. अगर ऐसा रहा तो इंडिया गठबंधन की एकता उलझती दिखेगी.
राजनीतिक जानकर बताते हैं कि समाजवादी पार्टी राष्ट्रीय दर्जा पाने के लिए यूपी के बाहर होने वाले विधानसभा चुनाव में निश्चित तौर पर भाग लेगी. इसी कारण सपा उत्तर प्रदेश से बाहर मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में तेजी सी लगी है. ऐसे में अब देखना है क्या कांग्रेस सपा को इन राज्यों में सीट वितरण में कोई महत्व देगी या नहीं. आम चुनाव के लिए बना ‘इंडिया’ गठबंधन क्या विधानसभा चुनाव के लिए भी काम करेगा, इस सवाल को लेकर ऊहापोह की स्थिति है. मध्यप्रदेश में सपा पूरी 230 सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा कर रही है.
एमपी सपा के प्रदेश अध्यक्ष रामायण पटेल का कहना है कि हमारी पार्टी यहां होने वाले विधानसभा चुनावों में दमदारी से भाग लेगी. हमने सात सीटों पर उम्मीदवार भी घोषित कर दिए हैं. हमारी सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी है. कांग्रेस के गठबंधन का निर्णय राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव लेंगे. हमारा हर जिले में संगठन हैं. सभी जिलों में विधानसभा प्रभारी हैं. उन्होंने बताया कि हमने सीधी, रीवा, दतिया, सिंगरौली, छतरपुर, भिंड जिले में हमने उम्मीदवार उतार दिए हैं. रीवा जिले में अखिलेश यादव 27 सितंबर को चुनावी प्रचार के लिए भी आ रहे हैं.
सपा छत्तीसगढ़ में भी तकरीबन 40 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है. यहां के प्रदेश अध्यक्ष नवीन गुप्ता का कहना है कि राज्य में हमारा संगठन मजबूत है. हमने 40 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रखी है. हमारे यहां से पार्षद और सभासद रह चुके हैं. हमारा संगठन जमीन पर है. कांग्रेस से गठबंधन का निर्णय राष्ट्रीय नेतृत्व लेगा. यहां राष्ट्रीय अध्यक्ष 15 अक्टूबर को प्रचार के लिए आने वाले हैं.
सपा के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि हमारी पार्टी की तरफ पूरा प्रयास है कि विपक्षी एकता का संदेश होने वाले विधानसभा से भी जाना चाहिए. इसलिए जहां कांग्रेस की सरकार है, वहां कांग्रेस को सपा का सहयोग करना चाहिए. वैसे सपा 2003 के विधानसभा चुनाव में सात सीटें जीत चुकी है. सपा ने 230 में से 161 सीटों पर प्रत्याशी खड़े किए थे, जिनमें से 7 को जीत मिली थीं.
उन्होंने बताया कि छतरपुर, चांदला, मैहर, गोपदबनास, सिंगरौली, पिपरिया और मुल्ताई सीट पर सफलता मिली थी. इसके बाद 2018 में भी हमें एक सीट पर सफलता मिल चुकी है. मध्यप्रदेश में हमारा संगठन पहले से है, इसलिए पार्टी ने यहां चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है. अगर छत्तीसगढ़ की बात करें तो हम वहां 2003 से चुनाव लड़ रहे हैं, इसके बाद 2018 में भी चुनाव में हमारे उम्मीदवार मैदान में थे. इसलिए वहां भी हमारे संगठन की मौजूदगी है.
उन्होंने बताया कि राजस्थान में सपा अपने संगठन को विस्तार देने के लिए कुछ सीटों पर चुनाव लड़ सकती है. अलवर व कुछ अन्य सीटों पर पिछड़ा वर्ग वोटर की संख्या ठीकठाक है. खास तौर पर, यादव वोटर भी अलवर में भारी तादाद में हैं.
इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस (इंडिया) गठबंधन में घोसी विधानसभा उपचुनाव के बाद मतभेद उभरने लगे हैं. इस उपचुनाव के परिणाम के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय ने एक बयान में कहा था कि घोसी में कांग्रेस ने सपा उम्मीदवार को जीताया, लेकिन उत्तराखंड के बागेश्वर में सपा ने उम्मीदवार उतार कर कांग्रेस उम्मीदवार को हराने का काम किया है. इस पर सपा ने भी पलटवार किया.
सपा के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा कि अब उलाहना देने का कोई मतलब नहीं है. कांग्रेस के किसी नेता ने अखिलेश यादव से बात नहीं की थी, जबकि घोसी में सपा ने कांग्रेस से समर्थन मांगा था. कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता डाक्टर सीपी राय ने कहा कि लोकतंत्र में कोई कहीं से चुनाव लड़ सकता है. बाकी रही बात मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की तो यहां पर इनका कोई जनाधार नहीं है. एक बार मध्यप्रदेश में बहुत पहले इनकी कुछ सीटे आ गई थीं, तब उस समय मुलायम सिंह थे और परिस्थिति भी अलग थी. यह लोग गुजरात और कर्नाटक में चुनाव लड़े, जहां महज दो तीन सौ वोटो में सिमट गए. जहां इनका जनाधार नहीं है, वहां कांग्रेस कोई दबाव नहीं मानेगी.
कांग्रेस के अंदर यह बहुत मजबूत विचार चल रहा है कि हमें अगर 2024 में कोई कदम उठाना है तो अपने दम पर. क्षेत्रीय पार्टियों पर निर्भर नहीं रह सकते. डीएमके और आरजेडी के आलावा कांग्रेस का किसी और पार्टी पर विश्वास नहीं है. अखिलेश यादव इस कमजोरी को जानते हैं. अगर उन्होंने अपने कदम पीछे किए तो कांग्रेस अपने को मजबूत करने के लिए इस्तेमाल करेगी न कि गठबंधन को. अखिलेश पीछे नहीं हट सकते, नहीं तो यूपी में इनकी सीटें घट जाएगी. अखिलेश की पार्टी में विचार हो रहा है कि चार राज्यों में अगर समझौता नहीं हुआ तो वो कहेंगे यूपी हमारे लिए छोड़ दो तो हम इन चारों जगह पर चुनाव नहीं लड़ेंगे, वर्ना इन जगहों पर भी चुनाव लड़ेंगे.
(इनपुट आईएएनएस के साथ)