झारखंड सरकार का कड़ा नियम: MBBS के बाद राज्य में ही करना होगा JOB, वरना देने पड़ेंगे 30 लाख
Advertisement

झारखंड सरकार का कड़ा नियम: MBBS के बाद राज्य में ही करना होगा JOB, वरना देने पड़ेंगे 30 लाख

अधिकारी ने बताया कि "जो भी छात्र झारखंड के चिकित्सा कॉलेजों में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे हैं उन्हें राज्य में तीन साल तक काम करना होगा. 

छात्रों को कॉलेज में अपने मूल दस्तावेज और बॉन्ड पेपर जमा कराने होंगे.(प्रतीकात्मक तस्वीर)

रांची: झारखंड सरकार ने सरकारी चिकित्सा संस्थानों से ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट करने के बाद चिकित्सकों को राज्य में तीन साल काम करना अनिवार्य कर दिया है. स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि राज्य में चिकित्सा सेवा के हालात को बेहतर बनाने के लिए ऐसा किया गया है. झारखंड चिकित्सकों की अत्यधिक कमी से जूझ रहा है. बड़ी संख्या में सरकारी अस्पताल अपनी वास्तविक क्षमता का 40 से 60 फीसदी ही कार्य कर रहे हैं. अधिकारी ने बताया कि "जो भी छात्र झारखंड के चिकित्सा कॉलेजों में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे हैं उन्हें राज्य में तीन साल तक काम करना होगा.

  1. झारखंड चिकित्सकों की अत्यधिक कमी से जूझ रहा है. 
  2. जो 3 साल की सेवा देने में विफल रहता है उसपर 30 लाख रुपये का जुर्माना 
  3. चिकित्सा सेवा के हालात को बेहतर बनाने के लिए बनाया गया नियम 

इससे पहले यह समय सीमा एक साल थी. जो भी तीन साल की सेवा देने में विफल रहता है उसपर 30 लाख रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा." झारखंड मंत्रिमंडल ने बुधवार को नए दिशानिर्देश को मंजूरी दे दी है. कोई भी चिकित्सा छात्र बीच में ही एमबीबीएस पढ़ाई छोड़ता है तो उसे 20 लाख रुपये का जुर्माना देना होगा.

साथ ही अगर कोई छात्र पोस्ट ग्रेजुएट की पढ़ाई बीच में छोड़ता है तो उसे 30 लाख रुपये का जुर्माना देना होगा. इससे पहले यह जुर्माना 15 लाख रुपये था. चिकित्सा छात्रों को कॉलेज में अपने मूल दस्तावेज और बॉन्ड पेपर जमा कराने होंगे. बॉन्ड और मूल दस्तावेज तीन साल की नौकरी के बाद लौटाए जाएंगे. 

MBBS करने की सोच रहे हैं तो पहले खबर पढ़ लें, स्टूडेंट्स
विदेशी यूनिवर्सिटी में एमबीबीएस की पढ़ाई करने के इच्छुक छात्रों को अब जल्द नीट की परीक्षा पास करनी होगी, क्योंकि सरकार उनके लिए यह परीक्षा अनिवार्य करने की योजना बना रही है ताकि सिर्फ सक्षम छात्र ही विदेशों के विश्वविद्यालयों में दाखिला ले सकें. वर्तमान में देश में किसी भी सरकारी या निजी मेडिकल कॉलेज में पढ़ने के इच्छुक छात्रों को राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) पास करनी होती है. यह परीक्षा वर्ष 2016 से अस्तित्व में आयी थी. स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार प्रस्ताव अभी शुरुआती चरण में है.

डॉक्टर बनना हो जाएगा मुश्किल
अधिकारी ने बताया कि फिलहाल जो विद्यार्थी चिकित्सा की पढ़ाई करने के लिए विदेश जाते हैं, उनमें करीब 12 से 15 प्रतिशत स्नातक ही फॉरेन मेडिकल ग्रैजुएट्स एक्जामिनेशन (एफएमजीई) की परीक्षा में उत्तीर्ण हो पाते हैं. इस परीक्षा का आयोजन भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) करता है. उन्होंने बताया, ‘‘विदेश से पढ़ाई कर लौटने वाले छात्रों में से मुश्किल से 12 से 15 प्रतिशत स्नातक ही फॉरेन मेडिकल ग्रैजुएट्स एक्जामिनेशन (एफएमजीई) की परीक्षा पास कर पाते हैं. अगर वे एफएमजीई की परीक्षा पास नहीं करते हैं तो भारत में डॉक्टरी के लिए पंजीकृत नहीं होते पाते हैं.’’ 

(इनपुट भाषा से भी)