Chehre Review: अमिताभ बच्चन की ये फिल्म आपको क्यों देखनी ही चाहिए, जान लीजिए
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Chehre Review: अमिताभ बच्चन की ये फिल्म आपको क्यों देखनी ही चाहिए, जान लीजिए

Chehre Movie Review: लंबे इंतजार के बाद अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) और इमरान हाशमी (Emraan Hashmi) की फिल्म रिलीज हो चुकी है. 

फोटो साभार: Instagram

नई दिल्ली: एक कहावत है कि अदालत का मुंह भगवान दुश्मन को भी ना दिखाए, ये इसलिए क्योंकि हमारे देश में अदालती मामलों में इतनी देर होती है कि तारीख पर तारीख मिलती जाती है. लेकिन अब एक ऐसी अदालत सामने आ चुकी हैं जहां न्याय मिलने और अपराधी को सजा भुगतने में समय नहीं लगता. ये अदालत दूसरी फिल्मों की तरह नहीं जहां महीनों सालों के बाद भी न्याय नहीं होता. इस अदालत में जज हैं अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) और अपराधी हैं इमरान हाशमी (Emraan Hashmi). जी हां दिल दहला देने वाली थ्रिलर-मिस्ट्री फिल्म 'चेहरे' (Chehre) रिलीज हो चुकी है. फिल्म की कहानी, एक्टिंग, निर्देशन कैसा है (Chehre Review) ये हम आपको बताने जा रहे हैं. 

  1. अमिताभ-इमरान की फिल्म हुई रिलीज
  2. फिल्म ने बताया फैसले और न्याय का अंतर
  3. दमदार है पूरी कास्ट और कहानी 

फिल्म: चेहरे
स्टार रेटिंग: 3/5
कास्ट: अमिताभ बच्चन , रिया चक्रवर्ती , रघुवीर यादव , इमरान हाशमी और अन्नू कपूर
लेखक: रंजीत कपूर और रूमी जाफरी
निर्देशक: रूमी जाफरी
निर्माता: रूमी जाफरी

थ्रिलर मिस्ट्री देख कांपेंगे अपराधी

रूमानी-कॉमिक फिल्में लिखने वाले रूमी जाफरी बतौर निर्देशक कसी हुई थ्रिलर-मिस्ट्री लाए हैं. ये अदालत और अपराधी की कहानी होते हुए भी कोर्ट ड्रामा ना होकर थ्रिलर फिल्म है. फिल्म की कहानी और नाटकीयता ऐसी है जो देखते हुए असली सा महसूस होने लगती है. यहां कहानी कुछ ऐसी है कि न्याय पसंद और उसी दुनिया से रिटायर्ड बुजुर्ग अपनी हर शाम एक घर एक साथ बैठकर एक केस बनाते हैं अपनी अलग ही तरह की अदालत लगाते हैं. ऐसे में उनके पास कुछ लोग फंस जाते हैं और जिरह शुरू हो जाती है. लेकिन यहां 'चेहरे' (Chehre) सिर्फ न्याय ही नहीं बल्कि फैसले और न्याय का फर्क दिखाती है. फैसला तथ्यों के आधार पर होता है. अतः जरूरी नहीं कि वह फैसला न्याय ही हो. 

इमरान कैसे फंसे इस अदालत में 

फिल्म में मनाली की भयंकर बर्फबारी के बीच दिल्ली के लिए रवाना हुआ एड एजेंसी का सीईओ समीर मेहरा (इमरान हाशमी) बीच में ही फंसकर रह जाता है. जिसकी वजह है रास्ते में गिरा पेड़, इसके साथ ही उसकी कार का खराब होना. ऐसे में वह परमजीत सिंह भुल्लर (अन्नू कपूर) से मिल जाता है, जो उसे अपने सीनियर सिटीजन दोस्तों के साथ कुछ समय बिताने का ऑफर देता है. दोनों रिटायर्ड जज जगदीश आचार्य (धृतिमान चटर्जी) के घर पहुंचते हैं. क्रिमिनल लॉयर के रूप में रिटायर हुए तलीफ जैदी (अमिताभ बच्चन) और जल्लाद रहे हरिया जाटव (रघुवीर यादव) भी पहले से ही बैठक लगाए हैं. अब शुरु होता है असली खेल!

लग गया कत्ल का केस 

बातें शुरू तो बड़े ही आराम से होती हैं लेकिन जैसे समीर मेहरा से पूछा जाता है कि क्या उसने कभी कोई अपराध किया है? जिसके जवाब में समीर इंकार करता है. इसके बाद बातों बातों में वह बताता है कि हाल ही में उसके पूर्व बॉस ओसवाल (समीर सोनी) की मृत्यु हुई, जो काफी खड़ूस टाइप इंसान था. उसकी जगह ही कंपनी में समीर को प्रमोट कर दिया गया है. बस इसी बात पर लतीफ जैदी कहते हैं कि मान लेते हैं कि मेहरा ने ओसवाल का कत्ल किया है. केस शुरू होता है.

डरावना है अमिताभ का अंदाज

ये केस जिस तरह से उलझता जाता है और समीर अपने आप को अपराधी साबित ना होने से कैसे बच पाएगा या नहीं बचेगा ये सब तो आप फिल्म देखने पर जानेगें लेकिन इसी सब के बीच जो दृश्य सामने आते हैं वह दिल दहलाने के लिए काफी हैं. अमिताभ बच्चन का अंदाज काफी डरा देने वाला है. 

गजब का रोमांच 

फिल्म पर ओवरऑल बात की जाए तो हर तरह से फिल्म में अमिताभ बच्चन और इमरान हाशमी के साथ सभी कलाकारों ने दिल जीतने वाला काम किया है. अन्नू कपूर, रघुवीर यादव, धृतिमान चटर्जी के रोल भी इतने दमदार हैं कि उनके बिना फिल्म का रस कम हो जाएगा. रिया चक्रवर्ती की वापसी छोटे रोल के बाद भी दमदार है. वहीं क्रिस्टल डिसूजा, समीर सोनी और सिद्धांत कपूर ने अपनी भूमिकाएं बढ़िया अंदाज में निभाई हैं.

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