Gulmohar Review: बिखरते रिश्तों की इस कहानी में उम्मीद हैं ऐक्टर, शर्मीला टैगोर-मनोज बाजपेयी हैं प्लस फैक्टर
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Gulmohar Review: बिखरते रिश्तों की इस कहानी में उम्मीद हैं ऐक्टर, शर्मीला टैगोर-मनोज बाजपेयी हैं प्लस फैक्टर

Sharmila Tagore: गुलमोहर परिवार के पतझड़ की कहानी है. लोग डाल के पत्तों की तरह टूट रहे हैं. घर बिखर रहा है. इसकी ठोस वजह भी है, मगर आपसी संघर्ष रिश्तों को लहूलुहान करने जैसा नहीं है. शर्मीला टैगोर को आप लंबे समय बाद देखेंगे. जबकि मनोज बाजपेयी और उनकी पत्नी की भूमिका में सिमरन बहुत सहज हैं.

 

Gulmohar Review: बिखरते रिश्तों की इस कहानी में उम्मीद हैं ऐक्टर, शर्मीला टैगोर-मनोज बाजपेयी हैं प्लस फैक्टर

Manoj Bajpayee Film: ‘कभी कभी लगता है कि एक ही घर में रहते हैं, फिर भी कोई किसी को नहीं जानता.’ ‘मम्मीजी ने घर बेच दिया, बेटा साथ नहीं रहना चाहता.’ ‘दो मंजिलों का घर तो बन गया, कमरे भी बड़े बन गए, पर इस एक घर में न जाने कब हम सबने अपने-अपने कमरों में खुद के घर बना लिए.’ डिज्नी हॉटस्टार पर रिलीज हुई करीब दो घंटे दस मिनिट की फिल्म गुलमोहर के ये तीन डायलॉग आप ट्रेलर में मनोज बाजपेयी के मुंह से सुन सकते है. इनमें आप गुलमोहर की समस्या को समझ सकते हैं. पूरी कहानी इसी के आस-पास बुनी है. एक रईस बत्रा परिवार, जिसके पास जीवन की सारी मूलभूत सुविधाएं और संपन्नता है, परिवार बिखर रहा है.

कहानी का बाग
गुलमोहर एक बड़ा दो मंजिला बंगला है. जहां बत्रा परिवार रहता है. परिवार की मुखिया कुसुम बत्रा (शर्मीला टैगोर) हैं. उनके पति को गुजरे कुछ बरस हो चुके हैं. उनका 55 साल का बेटा अरुण बत्रा (मनोज बाजपेयी), उसकी पत्नी इंदिरा (सिमरन). दोनों का बेटा आदित्य (सूरज शर्मा) बहू दिव्या (कावेरी सेठ) और बेटी अमृता (उत्सवी झा). सब गुलमोहर में रहते हैं. आदित्य अपना स्टार्टअप शुरू करने के लिए स्ट्रगल कर रहा है और दिव्या अच्छी नौकरी में है. अमृता गीत लिखती और एक रिलेशनशिप में है. जब सारा परिवार एकजुट दिख रहा होता कि तभी पता चलता है कि श्रीमती कुसुम बत्रा ने यह घर बेचने का फैसला कर लिया है. वह खुद अब पांडिचेरी में जाकर बसेंगी. उधर आदित्य पिता से अलग रहने का फैसला करता है. वह आत्मनिर्भर होना चाहता है और अपने रईस पिता से उसे कोई मदद नहीं चाहिए.

हो जाए होली
गुलमोहर की कहानी में और भी पात्र हैं. कुसुम बत्रा के देवर सुधाकर बत्रा (अमोल पालेकर) और उनका परिवार. गुलमोहर में काम करने वाली नौकरानी रेशमा और गार्ड जितेंद्र कुमार (जतिन गोस्वामी). सुधाकर जहां कुसुम से पुराने पारिवारिक कारणों से नाराज, कुछ खलनायकी वाले अंदाज में निकलकर आते हैं, तो रेशमा और जितेंद्र इस बिखरते परिवार की कहानी में लवस्टोरी बुनते हैं. इन बातों के बीच कुसुम चाहती हैं कि इस घर को छोड़ने से पहले परिवार यहां आखिरी बार होली मनाए क्योंकि हर साल वे यह त्यौहार जोर-शोर से मनाते रहे हैं. तभी एक पुराना राज अरुण और इंदिरा के सामने उजागर होता है. वह इसे सबके सामने रखते हैं और बिखराव के मोड़ पर खड़े परिवार में नई हलचल पैदा हो जाती है.

खास वर्ग का सिनेमा
संवेदना के स्तर पर गुलमोहर हाई है, लेकिन कहानी को मॉडर्न बनाने के चक्कर में राइटर-डायरेक्टर ने इसमें लेस्बियनिज्म का तड़का लगा दिया है. अमेजन प्राइम पर माधुर दीक्षित की पारिवारिक फिल्म मजा मा (2022) को दर्शकों ने इसी वजह से रिजेक्ट कर दिया था. वह खतरा गुलमोहर पर भी है. महानगरों में भले ही इसे दर्शक स्वीकार लें, लेकिन इस दायरे के बाहर जोखिम हैं. साथ ही समाज के जिस ऊंचे तबके की कहानी गुलमोहर दिखाती है, उससे तमाम दर्शक कनेक्ट नहीं कर पाएंगे. सिर्फ मनोज बाजपेयी और बरसों बाद नजर आ रही शर्मीला टैगोर ही इस फिल्म की तरफ आकर्शित करने वाले अहम नाम हैं. टूटते रईस परिवारों की कहानी हिंदी के दर्शकों के लिए नई नहीं है. ऐसे में यह एक खास दर्शक वर्ग का ही सिनेमा है.

गुलमोहर से बाहर बात
गुलमोहर की कथा-पटकथा सधी रफ्तार में चलती है और निर्देशक कहानी में खास थ्रिल न होने के बावजूद, काफी हद तक दिलचस्प बनाए रखते हैं. लेकिन शर्मीला टैगोर और उत्सवी झा के ट्रेक ऐसे मोड़ लेते हैं, जो कहानी की सहजता को खत्म करते हैं. बात गुलमोहर से बाहर निकल जाती है. इसी तरह से अमोल पालेकर का किरदार भी कुछ बेहतर ढंग से रेखांकित होने की डिमांड करता है. मनोज बाजपेयी से जुड़ी बैकस्टोरी बहुत आश्वस्त नहीं करती. गुलमोहर की जटिलताएं बिना किसी खास मशक्कत के आसानी से अंत में सुलझ जाती हैं. ऐसे में कहानी का ऊंचा उठता ग्राफ दूसरे हिस्से में तेजी से नीचे आ जाता है. रेशमा और गार्ड जितेंद्र कुमार की लव स्टोरी गुलमोहर में कुछ इसी तरह से जुड़ती है कि बात समाज के एक ही वर्ग की होकर न रह जाए.

एक्टर हैं उम्मीद
शर्मीला टैगोर को देखकर अच्छा लगता है और मनोज बाजपेयी का परफॉरमेंस शानदार है. सिमरन बड़ी सहजता से अपने किरदार में उतरी हैं, जबकि अमोल पालेकर अपने अंदाज में असर छोड़ते हैं. सूरज शर्मा और कावेरी सेठ ने भी अपना काम बढ़िया ढंग से किया है. निर्देशक राहुल चित्तेला की काम पर पकड़ है, परंतु कहानी में अनावश्यक बातों से बचते तो बेहतर रहता. फिल्म में गीत-संगीत की काफी जगह है, लेकिन यहां बात बन नहीं पाई. आखिरी में बजने वाला होली गीत ही कुछ ठीक है. फिल्म का कैमरा और आर्ट अच्छा है. बहुत सारे पात्रों के बीच ढील होने का खतरा यहां था, मगर एडिटिंग चुस्त है. आप दो घंटे निकाल सकते हैं, तो फिल्म शर्मीला टैगोर, मनोज बाजपेयी और सिमरन के लिए फिल्म देखी जा सकती है.

निर्देशकः राहुल वी. चित्तेला
सितारे : शर्मीला टैगोर, मनोज बाजपेयी, सिमरन, अमोल पालेकर, सूरज शर्मा, कावेरी सेठ, उत्सवी झा, तलत अजीज
रेटिंग***

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