Budget से क्या आएंगे अच्छे दिन? 5 पॉइंट में एक्सपर्ट ने बताई आपके काम की बात
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Budget से क्या आएंगे अच्छे दिन? 5 पॉइंट में एक्सपर्ट ने बताई आपके काम की बात

What do you get from budget 2023: पूरे बजट के दौरान बहुत से लोगों का ध्यान बस टैक्स छूट और क्या सस्ता, क्या महंगा में लगा रहा. लेकिन इसके अलावा बजट में बहुत कुछ ऐसा होता है, जिसकी जानकारी एक जागरूक नागरिक होने के चलते आपको जरूर होनी चाहिए.

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Budget explainer in Hindi: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा अगले साल होने वाले चुनाव से पहले पेश किए गए आखिरी पूर्ण बजट को लेकर कई बातें कही जा रही हैं. विपक्ष जहां इसे आम लोगों के लिए महंगाई बढ़ाने वाला बता रहा है, वहीं सरकार पूंजीगत व्यय में अच्छी-खासी वृद्धि के साथ इससे विकास को जरूरी रफ्तार मिलने की बात कर रही है.

बजट से क्या अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी, क्या यह रोजगार बढ़ाने के साथ लोगों की आकांक्षाओं के अनुरूप है, इन्हीं बातों पर पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग से भाषा के पांच सवाल और उनके जवाब:

सवाल 1: पूर्व वित्त सचिव के तौर पर आप 2023-24 के बजट को कैसे देखते हैं. क्या यह देश की अर्थव्यवस्था को जरूरी गति प्रदान करेगा?

जवाब: बजट में पूंजीगत व्यय अच्छा-खासा बढ़ाकर वृद्धि को गति देने की बात कही गई है. हालांकि, दक्षता के स्तर पर इसमें कई गंभीर मुद्दे हैं. पूंजीगत व्यय में एक हिस्सा (1.30 लाख करोड़ रुपये) राज्यों को दिया जाने वाला कर्ज है. यह राज्यों के पूंजीगत व्यय के लिए दिया जाने वाला कर्ज है. यानी इससे राज्यों के पूंजीगत व्यय के स्तर पर कोई इजाफा नहीं हो रहा है.

इसी तरह, पूंजीगत व्यय में अच्छा खासा हिस्सा वह है, जो सार्वजनिक क्षेत्र के पूंजी व्यय के स्थान पर है. जैसे इंडियन रेलवे फाइनेंस कॉरपोरेशन (IRFC) जिस पूंजी की व्यवस्था बाजार से करता था, उसका वित्तपोषण इस बार पूंजीगत व्यय के रूप में बजट से किया गया है. IRFC के लिए पिछले साल बजट में आंतरिक और अतिरिक्त बजटीय संसाधन (IEBR) के रूप में 66,500 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य था जबकि कंपनी इस साल बाजार से कुछ नहीं उठाएगी. आईआरएफसी जो स्वयं से पूंजी जुटाकर व्यय करती, उसकी जगह बजट में रेलवे के बजटीय पूंजीगत व्यय आवंटन को 2022-23 के बजटीय अनुमान 1.37 लाख करोड़ रुपये से बढ़ाकर 2023-24 में 2.40 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है.

इसके अलावा पूंजीगत व्यय में 30,000 करोड़ रुपये पूंजीगत समर्थन के रूप में तेल विपणन कंपनियों को देने का प्रस्ताव है. यह कुछ और नहीं बल्कि संभवत: एक तरह से राजस्व समर्थन है जो इक्विटी के रूप में एलपीजी और तेल उत्पादों की बिक्री पर हुए नुकसान की भरपाई को पूरा करने के लिए है. इस प्रकार देखा जाए, तो वास्तव में पूंजीगत व्यय चालू वित्त वर्ष के बजटीय अनुमान 7.5 लाख करोड़ रुपये से कम बैठेगा. अंतत: केंद्र सरकार के पूंजीगत व्यय और विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि में कोई सीधा संबंध नहीं है. पिछले साल के बहुत अधिक पूंजीगत व्यय के बावजूद विनिर्माण क्षेत्र में केवल 1.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

सवाल 2: नयी आयकर व्यवस्था में राहत, बचत को बढ़ावा देने जैसे उपायों को देखते हुए मध्यम वर्ग और नौकरीपेशा लोगों के लिए यह बजट कितना बेहतर है?

जवाब: सरकार ने कई सारे ‘स्लैब’ और विकल्पों के साथ व्यक्तिगत आयकर व्यवस्था को अधिक जटिल बना रखा है. अब व्यक्तिगत आयकर प्रावधान के तहत सात लाख रुपये की सकल आय वाले को कोई कर नहीं देना होगा. उन्हें लोक भविष्य निधि (पीपीएफ), एलआईसी प्रीमियम जैसी बचत की जरूरत नहीं होगी. लेकिन सात लाख रुपये से 15 लाख रुपये तक की आय वाले को विकल्प चुनने पड़ेंगे. पुन: जिन लोगों की आय 15 लाख रुपये से अधिक है और जिन्होंने मकान में निवेश कर रखा है औेर अच्छी खासी बचत तथा निवेश है, वे नयी कर व्यवस्था में नहीं जाएंगे.

सवाल 3: क्या यह बजट रोजगार बढ़ाने और महंगाई को काबू में लाने वाला साबित होगा?

जवाब: बजट में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे व्यापक स्तर पर रोजगार बढ़े या महंगाई नियंत्रण में योगदान हो. यह अलग बात है कि हाल में खुदरा मुद्रास्फीति कुछ कम हुई है, लेकिन यह अभी भी ऊंची बनी हुई है.

सवाल 4: सरकार का विनिवेश लक्ष्य लगातार घट रहा है. बजट में एक तरह से इस पर चुप्पी है. क्या इसकी कोई खास वजह है?

जवाब: मुझे लगता है कि सरकार ने एक तरह से निजीकरण कार्यक्रम को छोड़ दिया है. संभवतः सरकार के लिए बैंकों और अन्य उद्यमों में हिस्सेदारी बेचना राजनीतिक रूप से कठिन लग रहा है.

सवाल 5: वित्त वर्ष 2022-23 की तुलना में 2023-24 में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य कम रखा गया है. क्या यह राजकोषीय मजबूती की ओर बढ़ने के संकेत हैं?

जवाब: लगभग छह प्रतिशत राजकोषीय घाटा (बजट में 2023-24 के लिए राजकोषीय घाटा लक्ष्य 5.9 प्रतिशत) बहुत अधिक है. लंबे समय तक उच्च राजकोषीय घाटे का अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर होगा. इससे आने वाले समय में बड़े पैमाने पर कर्ज का बोझ बढ़ेगा.

(इनपुट: पीटीआई)

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