Share Market: क्या है Decoupling Myth? भारतीय बाजार पर कैसे डाल रहा है ये असर
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Share Market: क्या है Decoupling Myth? भारतीय बाजार पर कैसे डाल रहा है ये असर

US Economy: वैभव अग्रवाल का कहना है कि भले ही कुछ आईटी कंपनियां अपनी विशेषज्ञता के कारण अच्छा प्रदर्शन कर सकती हैं और विशिष्ट कार्यक्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर सकती हैं, लेकिन एक क्षेत्र के रूप में मांग में कमी होगी. 

शेयर मार्केट

Decoupling: भारतीय शेयर बाजार (Share Market) में पिछले कई दिनों से गिरावट का माहौल देखने को मिला था. हालांकि बाजार में उतार-चढ़ाव बना हुआ है और कभी मार्केट प्लस में जा रहा है तो कभी बाजार लाल निशान में भी देखने को मिल रहा है. कई  मौकों पर देखने को मिला है कि भारतीय शेयर बाजार अमेरिकी शेयर बाजार (US Share Market) से भी काफी प्रभावित होता है. अगर अमेरिकी शेयर बाजार हरे निशान में कारोबार कर रहा है तो भारतीय शेयर बाजार में भी तेजी देखने को मिलेगी. वहीं अगर अमेरिकी शेयर में गिरावट है तो भारतीय शेयर बाजार भी लाल निशान में कारोबार करते हुए दिखाई देंगे. हालांकि पिछले काफी वक्त से ऐसा कहा जा रहा है अब भारतीय शेयर बाजार अमेरिकी बाजार से प्रभावित नहीं होता है.

Coupling और Decoupling

इस दौरान कपलिंग (Coupling) और डीकपलिंग (Decoupling) की थ्योरी काफी सामने आ रही है. अगर अमेरिकी बाजार में तेजी और गिरावट है और भारतीय बाजार में भी उसी दौरान तेजी और गिरावट देखी जा रही है तो वहां कपलिंग थ्योरी मानी जाती है. लेकिन अगर अमेरिकी बाजार में गिरावट है और भारतीय बाजार में तेजी है, या फिर अमेरिकी बाजार में तेजी है तो भारतीय बाजार में गिरावट देखने को मिलती है तो वहां डीकपलिंग थ्योरी देखने को मिलती है. काफी वक्त से ऐसी बातें कही जा रही है कि भारतीय बाजार में डीकपलिंग थ्योरी देखने को मिल रही है. ऐसे में अमेरिकी बाजार की तेजी-मंदी का असर भारतीय बाजार पर नहीं पड़ रहा है.

लगेगा झटका

हालांकि अब इस डीकपलिंग थ्योरी को Basant Maheshwari Wealth Advisers LLP के रिसर्च हेड वैभव अग्रवाल ने नकार दिया है. वैभव अग्रवाल का कहना है कि अगर बुनियादी चीजों की बात करें तो भारतीय अर्थव्यवस्था अमेरीकी अर्थव्यवस्था पर काफी डिपेंड है. दरअसल, अगर अमेरिकी अर्थव्यवस्था मंदी में चली जाती है तो भारतीय निर्यातकों, विशेष रूप से आईटी सेवाओं के लिए डिमांग के झटके लगेगें, जिनके लिए बड़ी अमेरिकी टेक कंपनियां मुख्य ग्राहक हैं.

अस्थिरता

वैभव अग्रवाल का कहना है कि भले ही कुछ आईटी कंपनियां अपनी विशेषज्ञता के कारण अच्छा प्रदर्शन कर सकती हैं और विशिष्ट कार्यक्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर सकती हैं, लेकिन एक क्षेत्र के रूप में मांग में कमी होगी. इसलिए अमेरिका और यूरोप जैसे महत्वपूर्ण बाजारों में मांग के झटके कई भारतीय सूचीबद्ध कंपनियों की कमाई की संभावनाओं को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं. वैश्विक बाजारों के साथ भारत का जितना अधिक एकीकरण होगा, मैक्रो अनिश्चितताओं के कारण अस्थिरता उतनी ही अधिक होगी.

जोखिम

इसके अलावा अग्रवाल ने कहा कि भारत उभरते बाजार सूचकांक का हिस्सा है. सामान्य तौर पर, एफआईआई के बीच एक आम धारणा है कि मुद्रा जोखिम, ब्याज दर जोखिम, मुद्रास्फीति जोखिम या देश विशिष्ट जोखिमों के कारण उभरते बाजारों में निवेश करते समय अधिक जोखिम होता है. जब भी बाजारों में जोखिम होता है, विदेशी उभरते बाजार की इक्विटी बेचते हैं और अमेरिकी डॉलर जैसे सुरक्षित पनाहगाहों में अपना पैसा जमा करते हैं. इसलिए भले ही एक मौलिक दृष्टिकोण से भारत आकर्षक हो सकता है, एफआईआई से धन का आउटफ्लो होता है.

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